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________________ नहीं, पतंजलि के योग में परमात्मा परम है, बस उसकी शुद्ध उपस्थिति मात्र है। वह कुछ करता नहीं है, लेकिन उसकी उपस्थिति मात्र से ही घटनाएं घटने लगती हैं। प्रकृति आनंद से नृत्य करने लगती है। एक पुरानी कहानी है: एक बार एक राजा ने एक महल बनाया, उस महल का नाम शीशमहल था । उसके फर्श पर, दीवारों पर, छत पर चारों ओर छोटे छोटे शीशे ही शीशे जड़े हुए थे। पूरा महल ही शीशे से बना हुआ था, वह शीशमहल था। एक बार ऐसा हुआ कि गलती से रात को राजा का कुता महल के भीतर ही छूट गया और महल के बाहर वाला लगा दिया गया। कुत्ते ने जब अपने चारों ओर देखा तो वह घबरा गया, क्योंकि चारों ओर उसे कुत्ते ही कुते दिखाई दे रहे थे वही कुता चारों ओर ऊपर नीचे प्रतिबिंबित हो रहा था - उसे वहां कुर्ते ही कुत्ते दिखाई दे रहे थे। वह कोई साधारण कुत्ता तो था नहीं, वह राजा का कुत्ता था - बहादुर कुत्ता था - लेकिन फिर भी वह अकेला था। वह एक कमरे से दूसरे कमरे में दौड़ता रहा, लेकिन उसे कहीं कोई निकलने का रास्ता ही नहीं मिल रहा था, और निकलने का कोई उपाय भी नहीं था। सभी ओर से महल बंद था तो वह और अधिक घबराने लगा। उसने बाहर निकलने का प्रयत्न भी किया, लेकिन बाहर निकलने का कोई उपाय ही न था, क्योंकि दरवाजा बाहर से बंद था । लगे तो उसने अपने आसपास के दूसरे कुलों को डराने के लिए भौंकना शुरू कर दिया। लेकिन जैसे ही उसने भौंकना शुरू किया तो दूसरे कुते भी भौंकने क्योंकि वे तो उसी का प्रतिबिंब थे। फिर तो वह और भी घबरा गया। दूसरे कुर्ती को डराने के लिए वह दीवारों से टकराने लगा तो दूसरे कुत्ते भी चारों ओर से उस पर हमला करने लगे, उससे टकराने लगे। सुबह जब उस महल का दरवाजा खोला गया, तो वह कुत्ता मरा हुआ पाया गया। - लेकिन जैसे ही वह कुत्ता मरा, सभी कुत्ते मर गए । महल खाली हो गया। महल में कुत्ता तो एक ही था और उसी के अनेक प्रतिबिंब थे। यही पतंजलि की दृष्टि है कि सत्य तो केवल एक ही होता है, उसके लाखों प्रतिबिंब होते हैं। प्रतिबिंब के रूप में तुम मुझसे पृथक हो प्रतिबिंब के रूप में मैं तुमसे पृथक हूं, लेकिन अगर हम सत्य की ओर कदम बढ़ाए तो सभी पृथकता की दीवारें विलीन हो जाएंगी, और हम एक हो जाएंगे। एक प्रतिबिंब दूसरे प्रतिबिंब से अलग होता है, एक प्रतिबिंब को नष्ट किया जा सकता है और दूसरे प्रतिबिंब को बचाया जा सकता है। इसी भाति एक व्यक्ति की मृत्यु होती है संसार में ऐसे बहुत से तार्किक हैं जो पूछते हैं,' अगर केवल एक ही ब्रह्म है, एक ही परमात्मा है, वह एक ही है जो सब ओर फैला हुआ है, तो फिर जब कोई मरता है, तब दूसरे भी क्यों नहीं मर जाते?' बात एकदम सीधी-साफ है अगर कमरे में हजारों दर्पण हो, तो तुम कोई एक दर्पण नष्ट कर सकते हो एक ही प्रतिबिंब मिट जाएगा, दूसरे प्रतिबिंब नहीं
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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