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सच तो यह है, तुम कहना भी चाहोगे तो कुछ कह न सकोगे -तुम्हारे सभी विचार रुक जाएंगे। इतनी अभूतपूर्व मौन और शाति होती है, और बुद्धत्व अपने -आप में इतना प्रगाढ़ होता है कि किसी से कुछ पूछने की आवश्यकता ही नहीं होती है। इसलिए मेरी ओर से या तुम्हारी ओर से कहने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
और, 'क्या यह प्रश्न मेरा अहंकार पूछ रहा है?'
नहीं, अहंकार कभी बुद्धत्व के बारे में पूछता ही नहीं है। वह उसके बारे में पूछ ही नहीं सकता, क्योंकि बुद्धत्व तो अहंकार की मृत्यु है।
जब तुम ध्यान और प्रेम में डूबने लगते हो, तुम आनंद से भर जाते हो, और एक अनजाने अपरिचित आयाम में तम्हारे कदम बढ़ने लगते हैं, तब स्वभावत: यह विचार उठ खड़ा होता है, 'अगर मझे बुद्धत्व घट गया, तो कौन बताएगा?' क्योंकि अब तक जो कुछ भी हुआ, उसके लिए कोई चाहिए था जो तुमसे कह सके। और यह प्रश्न एक संन्यासिनी का है,मा प्रेम जीवन का है। ऐसा चंद्र-ऊर्जा वाले व्यक्ति को और भी अधिक ऐसा लगता है।
जब स्त्री किसी के प्रेम में पड़ती है, तो वह प्रतीक्षा करती है कि पुरुष उससे कहे कि वह उसे प्रेम करता है। वह यह भी निवेदन नहीं कर सकती कि मैं तुमसे प्रेम करती हूं। चंद्र –केंद्र कभी भी इतना सुनिश्चित नहीं होता है, जितना बौद्धिक –केंद्र हमेशा होता है। चंद्र-केंद्र अनिश्चित होता है, अस्पष्ट और धुंधला-धुंधला होता है। वह अनुभव कर सकता है, लेकिन फिर भी बता नहीं सकता कि वह अनुभव क्या हा स्ता
क्या है। स्त्री प्रेम में भी अनिश्चित ही रहती है जब तक कि पुरुष ही आकर उससे न कहे, और उसे भरोसा दिलाए कि 'ही, मुझे तुमसे प्रेम है।' इसीलिए स्त्रियां कभी भी अपनी ओर से पहल नहीं करती हैं, और अगर कोई स्त्री पहल करती भी है, तो पुरुष उस स्त्री से बचकर भाग निकलता है -क्योंकि पहल करने वाली स्त्री स्त्री न होकर पुरुष ही अधिक होती है। अगर स्त्री अपनी ओर से प्रेम का निवेदन करे, तो वह थोड़ा अशोभन मालूम का निवेदन करे, तो वह थोडा अशोभन मालम होता है। चंद्र -ऊर्जा,या स्त्री कभी भी अपनी ओर से प्रेम का निवेदन नहीं करती, वह तो प्रतीक्षा करती है।
तो मैं जानता हैं कि यह प्रश्न क्यों उठा है। अगर तुम अपने प्रेम तक के लिए सुनिश्चित नहीं हो, तो जब परमात्मा से तुम्हारा मिलन होगा, तब कौन तुम्हें बताएगा? तब तुम्हें कोई चाहिए होगा जो तुम्हें आश्वस्त कर सके।
इसकी कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि सूर्य -केंद्र में परमात्मा कभी घटित होता ही नहीं है। और सूर्य -केंद्रित लोग इस बारे में भी अपनी मूढ़ता के कारण सुनिश्चित होते हैं; वह चंद्र-केंद्र में भी कभी घटित नहीं होता है, और चंद्र-केंद्रित लोग इस बारे में बड़े ही सुंदर रूप से अनिश्चित होते हैं; बुद्धत्व तो दोनों के पार घटित होता है। बुद्धत्व के लिए पहले से कुछ नहीं कहा जा सकता कि वह कब घटेगा। लेकिन जब भी बदधत्व घटता है तो एकदम अनिश्चित और रहस्यमय ढंग से घटता है। जब