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________________ लेकिन सूर्य - ऊर्जा और चंद्र-ऊर्जा दोनों को समग्र होना होगा। चेतन को अपने में अचेतन को आत्मसात करना होगा, और सभी तरह के भेद और विभाजनों को गिरा देना होगा। जीसस जब कहते हैं, पुरुष स्त्री हो जाता है और स्त्री पुरुष हो जाती है तो उनका क्या अभिप्राय है? उनका यही अभिप्राय है कि जब व्यक्ति अपने अस्तित्व की समग्रता को स्वीकार कर लेता है और अपने अस्तित्व के किसी भी अंश को अस्वीकार नहीं करता, तब कहीं जाकर संतलन कायम होता है। और जब भीतर के स्त्री -पुरुष संतुलित हो जाते हैं, तो वे एक -दूसरे को समाप्त कर देते हैं। और व्यक्ति मुक्त हो जाता है। वे दोनों शक्तियां एक -दूसरे को व्यर्थ कर देती हैं और फिर कहीं कोई बंधन नहीं रह जाता है। व्यक्ति केवल तभी बंधन में रह सकता है, जब कोई एक ऊर्जा दूसरी ऊर्जा से अधिक शक्तिशाली हो जाए। अगर सूर्य –ऊर्जा, चंद्र-ऊर्जा से अधिक शक्तिशाली है, तब व्यक्ति का पुरुष से बंधन रहेगापुरुष मन से। अगर चंद्र-ऊर्जा सूर्य -ऊर्जा से अधिक शक्तिशाली है, तो व्यक्ति का स्त्री से बंधन रहेगा-स्त्रैण रूप से। जब सूर्य –ऊर्जा और चंद्र -ऊर्जा दोनों बराबर होते हैं, संतुलित होते हैं, तो वे एक दूसरे को व्यर्थ कर देते हैं; और तब ऊर्जा मुक्त हो जाती है। तब कोई आकार नहीं बचता है, व्यक्ति आकार -विहीन हो जाता है, निराकार हो जाता है। वही निराकार प्रतिभा है। तब व्यक्ति अपने अंतस में ऊपर और ऊपर उठने लगता है और फिर इस विकास का कहीं कोई अंत नहीं है। जब हम कहते हैं परमात्मा असीम है, उसका यही तो अर्थ है। व्यक्ति अपने अंतस में और- और विकसित होता चला जाता है-अधिक पूर्ण, और - और परिपूर्ण होता चला जाता है. तब हर क्षण अपने आप में परिपूर्ण होता है और हर आने वाला क्षण, हर आने वाला पल उससे भी कहीं अधिक परिपूर्ण और तृप्तिदायी होता है। तीसरा प्रश्न : भगवान कृपया इस उक्ति को विस्तारपूर्वक समझाएं 'योगियों और साधुओं की बुरी संगत में।' स्वामी योग चिन्मय। मैं तुम से एक कथा कहना चाहूंगा:
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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