________________
अब मुझे तुम से एक बात कहनी है। लोग सोचते हैं कि एक न एक दिन ऐसा समय अवश्य आएगा जब कोई वर्ग नहीं रहेंगे, आर्थिक ऊंच - नीच नहीं रहेगी, किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं रह जाएगा - कोई गरीब नहीं होगा, कोई अमीर नहीं होगा। और जिन लोगों ने इस सपने को, इस
आदर्श को पोषित किया है – उनमें मार्क्स, एन्जिल लेनिन और माओ हैं - ये सभी बुद्धि से जीने वाले लोग हैं, बौद्धिक लोग हैं और बुद्धि से कभी भी इस अवस्था तक नहीं पहुंचा जा सकता है। केवल अंतबोध के जगत में ही ऐसा संभव है कि वर्ग व्यवस्था समाप्त हो जाए। लेकिन ये लोग अंतबोध का विरोध करते हैं। मार्क्सवादी लोगों का सोचना है कि बुद्धि ही सब कुछ है, बुद्धि के पार कुछ भी नहीं है। अगर ऐसा ही है, अगर यही सत्य है तो फिर उनके आदर्श – राज्य की कल्पना कभी साकार नहीं हो सकती क्योंकि बुद्धि चालाक है और वह तो केवल दूसरों का शोषण करना ही जानती है। बुद्धि हिंसक है, आक्रमण करने वाली है, लड़ाई-झगड़ा करने वाली है, विध्वंसक और विनाशकारी होती है। सूर्य ऊर्जा बहुत ही उग्र हिंसक और उत्ताप से भरी हुई होती है। वह सभी कुछ जलाकर राख कर देती है, सभी कुछ जलाकर खत्म कर डालती है।
अगर सच में ही कभी वर्गविहीन समाज का सच्चे साम्यवादी समाज का निर्माण हुआ तो वहां पर कम्यूनों का अस्तित्व होगा और किसी प्रकार के वर्ग इत्यादि नहीं होंगे तब वह समाज पूर्णतया मार्क्स विरोधी होगा। और वैसे समाज को अंतर्बोध से ही चलना होगा। और उस समाज के निर्माता राजनेता तो हो नहीं सकते हैं – उस समाज का निर्माण केवल कवि, कल्पनाशील और स्वप्नदर्शी लोग ही कर सकते हैं।
-
मैं कहना चाहूंगा कि पुरुष उस समाज का स्रष्टा नहीं हो सकता, केवल स्त्री ही उस समाज की स्रष्टा हो सकती है। वर्गविहीन समाज का निर्माण स्त्री ही कर सकती है, पुरुष नहीं।
उस आदर्श स्वप्न को साकार करने में बुद्ध, महावीर, जीसस, लाओत्सु तो सहायक हो सकते हैं, लेकिन मार्क्स भूः नहीं, बिलकुल नहीं मार्क्स बहुत ही हिसाब किताब से, गणित से चलने वाला है, वह बहुत - ही चालाक और बुद्धि से जीने वाला है। लेकिन अभी तक इस दुनिया पर सूर्य तत्व का ही, पुरुषों का ही आधिपत्य रहा है। यह भी स्वाभाविक था, क्योंकि सूर्य आक्रामक और हिंसक होता है इसलिए वह संसार पर शासन करता चला आ रहा है।
लेकिन अब इस बात की संभावना है, क्योंकि सूर्य अब थक गया है, रोज-रोज उसकी ऊर्जा समाप्त होती जा रही है, और मनुष्य जाति इस संसार के संचालन के लिए दूसरे केंद्र की खोज कर रही है। अगर चंद्र-ऊर्जा क्रियाशील हो जाती है तो दुनिया में स्त्रियों की सच्ची उन्नति होगी।
लेकिन मेरे देखे, पश्चिम में स्त्रियों में जो इतना आक्रोश है, पुरुषों के खिलाफ जो आंदोलन है, क्रांतिकारी और उग्र विचार हैं लिब मूवमेंट, नारी मुक्ति आंदोलन वे सब तो ढलान की कगार पर