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सत्य की थोड़ी - थोड़ी झलक आती है। तर्क को तो अंधेरे में ही खोजना होता है, अंतर्बोध कभी अंधेरे में नहीं टटोलता है, उसे तो बस झलक आती है। उसे तो बस देखा जा सकता है।
जो लोग अंतर्बोध से जीते हैं, वे अपने से ही धार्मिक हो जाते हैं। जो लोग बौदधिक ढंग से जीते हैं, वे अपने से धार्मिक नहीं हो सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा वे बौदधिक रूप से किसी धर्म -दर्शन से जुड़ जाते हैं, धर्म से नहीं। वे किसी धर्म -सिद्धांत से जुड़ जाते हैं, लेकिन धर्म से नहीं। वे परमात्मा के लिए दिए गए प्रमाणों. के बारे में बातचीत कर सकते हैं, लेकिन परमात्मा के बारे में बात करना, परमात्मा की बात करना नहीं है। परमात्मा के बारे में बात करना लक्ष्य को चूक जाना है –बारे में -और इसी तरह चक्र घूमता चला जाता है, उसका कोई अंत नहीं है। ऐसे लोग हमेशा इधर-उधर की ही बात करते हैं, वे सीधे लक्ष्य की बात कभी नहीं करते हैं।
बदधि में धार्मिक होने की कोई स्वाभाविक प्रवृत्ति नहीं होती है, इसी कारण मंदिरों में, चर्चों में स्त्रियां अधिक दिखाई पड़ती हैं। चंद्र स्वभाव, स्त्री स्वभाव धर्म के साथ एक तरह की समस्वरता का अनुभव करता है। बुद्ध के शिष्यों में पुरुषों से तीन गुनी अधिक संख्या स्त्रियों की थी। यही अनुपात महावीर के साथ भी था, महावीर के संघ में दस हजार साधु थे तो तीस हजार साध्वियां थीं। यही अनुपात जीसस के साथ भी था। और जानते हो जब जीसस को सूली दी गयी, तो उनके सभी पुरुष अनुयायी भाग गए थे।
जब जीसस की देह को सूली पर से उतारा गया, तो केवल तीन स्त्रियां वहा पर मौजूद थीं। क्योंकि पुरुष तो केवल किसी चमत्कार की प्रतीक्षा में भीड़ में खड़े हुए थे। वे अपने सूर्य -केंद्र को, अपने पुरुष होने को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे थे कि 'ही, जीसस परमात्मा के एकमात्र बेटे हैं। -लेकिन कोई भी चमत्कार घटित नहीं हुआ। वे जीसस से चमत्कार की मांग कर रहे थे। वे लोग परमात्मा से और जीसस से प्रार्थना कर रहे थे, 'हमें कोई प्रमाण दें, कोई चमत्कार दिखाएं ताकि
हम भरोसा कर सकें।' जब उन्होंने देखा कि जीसस तो सूली पर एक सामान्य आदमी की तरह, एकदम सामान्य आदमी की तरह ही प्राणों को छोड़ दिए हैं -जब जीसस को सूली दी गई वहां पर दो चोर और भी थे जिनको जीसस के साथ ही सूली दी गयी थी, और जीसस की मृत्यु भी उनकी तरह ही हुई थी, उसमें जरा भी भेद न था-तो जो लोग किसी चमत्कार की आशा में वहां आए थे, वे लोग संदेह से भर गए। वे लोग कहने लगे, यह आदमी तो नकली है -वह सच में ईश्वर का बेटा न था, इसलिए वह ईश्वर न था, और वे लोग वहां से भाग निकले।
लेकिन ऐसा खयाल स्त्रियों के मन में नहीं आया। उन्हें किसी चमत्कार की प्रतीक्षा न थी, वे तो बस जीसस को देख रही थीं। उनका ध्यान किसी चमत्कार की ओर नहीं था, वे तो केवल जीसस को देख रही थीं- और उन्होंने चमत्कार देखा भी कि जीसस इतने सामान्य और सरल रूप से मृत्यू में प्रवेश कर गए। और यही था असली चमत्कार कि उन्होंने कुछ भी सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया।