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'और तुम ऊपर कैसे पहुंच गए?'
'इसी बात पर तो मुझे हंसी आ रही है।'
ही, ऐसा होता है। जब सूर्य और चंद्र का मिलन हो जाता है, तब उस पागल की तरह ही हो जाते हैं। ऊपर की ओर यात्रा प्रारंभ हो जाती है। और तब हंसी भी आएगी, क्योंकि यह सच में ही अजीब बात है। ऊपर की ओर जाना? कभी किसी ने ऐसा सुना तो नहीं है।
तुमने सुना है न कि एक बार न्यूटन बगीचे में बैठा हुआ था और एक सेब आकर गिरा। सेब का मनुष्य के साथ कुछ ज्यादा ही संबंध मालूम होता है –यही वह सेब था जब अदम सांप के द्वारा फंसा दिया गया था। और फिर यह बेचारा न्यूटन एक बगीचे में बैठा था और एक सेब आकर गिरा और न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज निकाला।
लेकिन जब भीतर के सूर्य और चंद्र मिल जाते हैं तो अकस्मात ही व्यक्ति एक अलग ही आयाम में पहुंच जाता है उसकी ऊर्जा ऊपर की ओर उठने लगती है। यह न्यूटन की अवज्ञा है, यह न्यूटन का अपमान है -इसके सामने गुरुत्वाकर्षण व्यर्थ हो जाता है। तुम ऊपर की ओर खींचे जाने लगते हो!
और निस्संदेह अभी तक का पूरा प्रशिक्षण इसी बात का है कि अगर कोई भी चीज ऊपर फेंको तो वह नीचे गिरती है –और सभी कुछ नीचे ही गिरता है। तो फिर हंसी का कारण ठीक ही है।
एक झेन फकीर होतेई के बारे में ऐसा कहा जाता है कि संबोधि को उपलब्ध होने के बाद उसकी हंसी फिर कभी बंद ही न हुई। फिर वह हंसता ही रहा, हंसता ही रहा, अपनी मृत्यु के समय भी वह हंस रहा था। वह हंसते -हंसते एक गांव से दूसरे गांव तक घूमा करता था। उसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि जब वह सोता भी था, तो उसकी हंसी की आवाज सुनी जा सकती थी। लोग होतेई से पूछते भी थे, आप हमेशा हंसते क्यों रहते हैं? वह कहता, मैं कैसे बताऊं। लेकिन कुछ हुआ है -कुछ अदभुत हुआ है। कुछ ऐसा जो नहीं होना चाहिए था, जिसका होना अपेक्षित नहीं था ऐसा कुछ हुआ
ही, वह पागल आदमी ठीक कह रहा था। अगर किसी दिन तुम अपने बिस्तर से गिर जाओ और अचानक तुम स्वयं को छत के ऊपर पाओ, तो तुम हसोगे नहीं तो क्या करोगे। लेकिन ऐसा होता है, और वह पागल आदमी कोई साधारण पागल नहीं है। यह एक सूफी कथा है। वह पागल आदमी जरूर कोई सदगुरु रहा होगा।
यह सूत्र कहता है 'मूर्धज्योतिषि सिद्धदर्शनम्।'
जिस क्षण चेतना का मिलन सहसार से होता है, अचानक तुम पार के जगत के लिए उपलब्ध हो जाते हो -सिदधों के जगत के लिए उपलब्ध हो जाते हो।