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ठीक कुछ ऐसी ही स्थिति शीला और चिन्मय की है। चिन्मय किसी के प्रेम में है - और वे दोनों मेरे पास आए। चिन्मय आकर कहने लगा, 'यह बहुत ही अजीब बात है। जब भी मैं किसी के प्रेम में होता हूं र तो तुरंत शीला चली आती है -जहां कहीं भी वह होती है, वह तुरंत कमरे' में चली आती है। ऐसे तो वह कभी नहीं आती। वह आफिस में काम कर रही होती है या कहीं और व्यस्त होती है। लेकिन जब भी मुझे कोई स्त्री अच्छी लगती है और मैं उसे अपने कमरे में ले जाता हं –चाहे सिर्फ बातचीत करने के लिए ही, तो शीला चली आती है। और ऐसा कई बार हुआ है।' और मैंने पूछा 'क्या कभी इससे विपरीत भी हुआ है?' उसने कहा, 'कभी नहीं।'
स्त्री अपनी अनुभूतियों से जीती है। वह तर्क से नहीं चलती, वह तर्क से नहीं जीती। वह तो अनुभव से जीती है -और वह अनुभव उसकी इतनी गहराई से आता है कि वह उसके लिए करीब-करीब सत्य ही हो जाता है। इसीलिए तो कोई पति तर्क में किसी स्त्री को नहीं हरा सकता। वे तुम्हारे तर्क सुनती ही नहीं हैं। वे अपनी बात पर ही अड़ी रहती हैं कि ऐसा ही है, ऐसा ही ठीक है। और तुम भी जानते हो कि ऐसा ही है, लेकिन फिर तुम अपना बचाव किए चले जाते हो। जितना तुम बचाव करते हो, उतना ही वे समझ लेती हैं कि ऐसा ही है।
एक बार ऐसा हुआ कि एक अदालत में मुकदमा चल रहा था। जिस दिन मुकदमे की जांच का में उनका भरोसा ही नहीं है, इसलिए उन्हें कोई जरूरत ही नहीं है सूर्य या चंद्र पुरुष या स्त्रैण अभिव्यक्ति की, इनका कहना है कि उसे कहा नहीं जा सकता है, उसकी अभिव्यक्ति का कोई उपाय नहीं है। लाओत्स का कहना है, ताओ को अगर अभिव्यक्त किया जा सके तो वह ताओ नहीं। सत्य को कहा नहीं कि वह झूठ हो जाता है, सत्य को अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है।
ये सारी संभावनाएं हैं, लेकिन वे अभी तक यथार्थ में घटित नहीं हुई हैं। कभी कहीं कोई व्यक्ति संबोधि को उपलब्ध हो जाता है, लेकिन उस उपलब्धि को, उस बोध को इस ढंग से विधिबद्ध करना होगा, इस तरह से वर्गीकृत करना होगा कि वह सामूहिक मनुष्य चेतना का अंग बन जाए।
अब सूत्र:
'सिर के शीर्ष भाग के नीचे की ज्योति पर संयम केंद्रित करने से समस्त सिदधों के अस्तित्व से जुड़ने की क्षमता मिल जाती है।
सहस्रार सिर के मूर्धन्य भाग के ठीक नीचे होता है। सहस्रार सिर का एक सूक्ष्म द्वार है। ठीक वैसे ही जैसे जननेंद्रिय मूलाधार का सूक्ष्म द्वार होती है। इस जननेंद्रिय के सूक्ष्म द्वार से व्यक्ति नीचे की ओर, प्रकृति में, जीवन में, दृश्य जगत में, पदार्थ में, रूप में, आकार में जाता है, ठीक इसी तरह व्यक्ति के सिर के मूर्धन्य भाग में एक निष्क्रिय इंद्रिय होती है, वहा भी एक सूक्ष्म द्वार होता है। जब ऊर्जा सहस्रार की ओर जाती है तो वह सूक्ष्म दवार ऊर्जा के विस्फोट से खुल जाता है, और वहा