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________________ श्वास की किया अपने से ही चलती रहती है। एक दिन तुम पाओगे कि मैं श्वास ले रहा हूं यह बात ही नासमझी की है, इसके विपरीत श्वास मुझ में चल रही है। और फिर एक दिन चेतना में एक आत्यंतिक और क्रांतिकारी मोड़ आता है। जब तुम श्वास बाहर छोड़ते हो, और श्वास भीतर लेते हो दिन अचानक तुम पाओगे कि तुम्हारा बाहर श्वास छोड़ना परमात्मा दवारा श्वास भीतर लिया जाना है, तुम्हारा श्वास भीतर लेना परमात्मा द्वारा श्वास बाहर छोड़ना है। समग्र अस्तित्व श्वास बाहर छोड़ता है वही घड़ी होती है जब तुम्हें लगता है कि तुम श्वास भीतर ले रहे हो। समग्र अस्तित्व श्वास भीतर लेता है. वही घड़ी होती है जब तुम्हें लगता है कि तुम श्वास बाहर छोड़ रहे हो। एक आध्यात्मिक व्यक्ति हमेशा परमात्मा के लिए रहता है। वह परमात्मा से कहता है, 'जब भी तेरी मर्जी हो, मैं तैयार हूं। मैं अनंत – अनंत काल तक तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा। मुझे कोई जल्दी भी नहीं है। मैं तो अनंतकाल तक तुम्हारी प्रतीक्षा कर सकता हूं।' आध्यात्मिक आदमी किसी अनुशासन से नहीं जीता। लेकिन भारत में या दूसरे अन्य मुल्कों में भी यही धारणा है कि आध्यात्मिक आदमी बहुत ही अनुशासनात्मक जीवन जीता है। यह आध्यात्मिक आदमी की परिभाषा नहीं है, न ही यह उसका परिचय है। और तुम इससे प्रभावित मत हो जाना, क्योंकि अगर व्यक्ति अपना जीवन स्वयं की मर्जी से जीने लगे, तो वह इस पूरे अस्तित्व के साथ एक अंतहीन संघर्ष में पड़ जाता है। यह तो ऐसे ही है, जैसे कोई व्यक्ति नदी में नदी की धारा के विपरीत तैरने की कोशिश करे। नदी में नदी की धार के विरुद्ध मत तैरना। नदी की लहरों पर सवार होकर उसके साथ एक हो जाना। लहरों के साथ बहना, उनके साथ बढ़ना-तो एक दिन लहरों के साथ बहते -बहते सागर में पहच जाओगे। नदी तो सागर की ओर जा ही रही है, तो चिंता की कोई बात ही नहीं है। सारी चिंता छोड़ दो और धारा के विरुदध तैरने का प्रयास मत करो, अन्यथा तम थकोगे, परेशान होंगे। लेकिन एक धार्मिक आदमी के लिए, एक आध्यात्मिक आदमी के लिए हमारी इसी तरह की धारणा है -जैसे कि वह परमात्मा की प्राप्ति के लिए बड़ा संघर्ष कर रहा हो। गुर्जिएफ अक्सर कहा करता था, 'तुम्हारे सारे तथाकथित धर्म परमात्मा के विरुद्ध हैं।' और वह ठीक ही कहता था। यह तथाकथित धर्म अहंकार के सूक्ष्म आयोजन हैं। इनसे सावधान रहना। मैं यहां तुम्हें परमात्मा का शत्रु बनाने के लिए नहीं हूं। मेरी सारी की सारी देशना यही है कि परमात्मा के साथसाथ कैसे बहना, कैसे उसके साथ मैत्रीपूर्ण होना, कैसे उसे अपने में उतरने से रोकना। मैं यहां तुम्हारे सारे के सारे कुशल आयोजनों को तोड़ देने के लिए हूं –फिर वह चाहे तुम्हारी नीति हो, या नैतिकता हो, या अनुशासन हो –यह सभी बातें कुशल आयोजन हैं। तुम इनका उपयोग अपनी सुरक्षा के कवच के रूप में करते हो। इन बातों की आडू में तुम अस्तित्व से पृथक होकर स्व –निर्भर होने का प्रयास करते हो। मैं यहां पर तुम्हारी इन सभी बातों को पूरी तरह से मिटा डालने को और उनको नष्ट कर देने के लिए हूं।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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