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मन अक्सर ही दो भागों में विभाजित रहता है, इसी भांति तो मन कार्य करता है। पहले तो तुम्हें
मन की पूरी प्रक्रिया को समझना होगा कि वह किस भांति कार्य करता है।
मन की आदत चीजों को तोड़ने की, विभाजन करने की होती है। अगर विभाजन करना छोड़ दो तो मन मिट जाता है। मन को विभाजन चाहिए होता है। मन हमेशा विपरीत अवस्थाओं को निर्मित करता है। मन कहता है मैं तुम्हें पसंद करता हूं मैं तुम्हें पसंद नहीं करता। मैं तुमसे प्रेम करता हूं, मैं तुमसे घृणा करता हूं। मन कहता है. यह सुंदर है, वह असुंदर है। मन कहता है: यह करना, वह मत करना। मन हमेशा चुनाव के सहारे ही जीता है। इसीलिए कृष्णमूर्ति का, जोर इस बात पर है कि अगर तुम चुनाव करना छोड़ दो, तो तुम अ-मन को उपलब्ध हो सकते हो। चुनाव रहित होने का अर्थ है कि संसार को बाटना छोड़ देना, विभक्त करना छोड़ देना।
थोड़ा सोचो। अगर मनुष्य इस पृथ्वी पर न रहे, तो क्या फिर सौंदर्य जैसा कुछ रह जाएगा? फिर क्या कुछ असुंदर और कुरूप रहेगा? फिर क्या. कुछ अच्छा और बुरा होगा?
मनुष्य-जाति के बिदा होते ही सारे भेद विलीन हो जाएंगे। संसार तो वैसे का वैसा ही रहेगा। फूल खिलते रहेंगे, तारे चलते रहेंगे, सूर्य निकलेगा, अस्त होगा –सभी कुछ उसी तरह चलता रहेगा। लेकिन मनुष्य के जाते ही भेद और विभाजन भी चला जाएगा। मनुष्य ही इस जगत में विभाजन को लाया है। मनुष्य' का अर्थ है 'मन'।
बाइबिल में एक कथा है, उस पूरी कथा का अर्थ ही कुछ इसी तरह से है। परमात्मा ने अदम से कहा कि ज्ञान के वृक्ष का फल न चखना। अच्छा हो कि ज्ञान के वृक्ष को हम मन का वृक्ष कहें। तब पूरी कथा झेन कथा हो जाएगी। और इसका अर्थ भी यही है। ज्ञान का वृक्ष मन का वृक्ष है; वरना परमात्मा क्यों चाहेगा कि उसके बच्चे अज्ञानी रहें? नहीं, परमात्मा चाहता था कि आदमी बिना मन के जीए। परमात्मा चाहता था कि मनुष्य बिना किसी विभाजन के एक समस्वरता में, एक सुसंगतता में जीए। बाइबिल की कथा का यही अर्थ है। अगर किसी झेन गुरु को इस पर कुछ कहना हो, या मुझे इस पर कुछ कहना हो; तो मैं यही कहंगा कि इसे मन का वृक्ष कहना ही ज्यादा अच्छा है। तब पूरी बात एकदम साफ हो जाती है।
परमात्मा यही चाहता था कि अदम बिना मन के अ-मन होकर जीए। जीवन को जीना, लेकिन जीवन को उसकी पूर्णता में, बिना विभक्त किए जीना; तब जीवन की गहराई अदभुत होती है। विभाजन व्यक्ति को भी विभक्त कर देता है।
क्या तुमने कभी इस पर ध्यान दिया है? जब कभी भी तुम विभाजन खड़े करते हो, तुम भीतर से सिकुड़ जाते हो, तुम में भी कुछ टूट जाता है। जिस क्षण तुम कहते हो, 'मैं उसे पसंद करता हूं 'तो