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'नाभि चक्र पर संयम संपन्न करने से शरीर की संपूर्ण संरचना का ज्ञान प्राप्त होता है।'
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और शरीर की संरचना बहुत ही जटिल संरचना है। शरीर बहुत ही नाजुक और कोमल होता है। हमारे शरीर में लाखों लाखों कोष होते हैं, हमारे छोटे से सिर में लाखों नर्स हैं। वैज्ञानिकों ने कई बड़ी-बड़ी जटिल यंत्र व्यवस्थाएं खोजी हैं, लेकिन आदमी के शरीर की तुलना में वे कुछ भी नहीं हैं और - ऐसी कोई संभावना भी नहीं है कि वे कभी ऐसी कोई और जटिल यंत्र - व्यवस्था निर्मित कर पाएंगे, जो कि इतनी कुशलता से कार्य कर सके। मनुष्य का शरीर सच में ही एक चमत्कार है और आदमी का शरीर निरंतर सत्तर वर्ष तक, सौ वर्ष तक स्वचालित ढंग से, अपने आप कार्य करता रहता है।
शरीर का अंग-अंग इस ढंग से बना हुआ है जो कि अपने आप में पूर्ण है। शरीर के हर अंग-प्रत्यंग की व्यवस्था अपने आप चलती रहती है जैसे भोजन; जब कभी हमको भूख लगती है, और जब हमारा पेट भर जाता है, तो भीतर से संकेत मिल जाता है-कि अब बस खाना बंद करो। शरीर भोजन पचाता है, और उससे ही रक्त, हड्डी, मांस-मज्जा का निर्माण होता है। और तो व्यर्थ का खाद्य-पदार्थ भीतर होता है, उसे शरीर बाहर फेंककर स्वयं को स्वच्छ करता रहता है। क्योंकि शरीर में प्रतिपल न जाने कितने कोष मर रहे होते हैं, शरीर को कोषों को निकालकर बाहर भी फेंकना होता है। इस तरह शरीर कोषों का निर्माण भी करता है, और मृत कोषों को बाहर फेंककर स्वयं को स्वच्छ एवं सुव्यवस्थित भी करता रहता है। और यह सभी कुछ स्वचालित ढंग से चलता रहता है।
अगर व्यक्ति जीवन के सहज स्वभाव का अनुसरण करे, तो शरीर अपने आप बहुत ही सुंदर और सुव्यवस्थित ढंग से कार्य करता है और तब शरीर के साथ एक तरह की लयबद्धता निर्मित हो जाती है।
नभि केंद्र को जान लेने से शरीर की संपूर्ण कार्य व्यवस्था को जाना जा सकता है।
इसी तरह से योग के शरीर-विज्ञान को जाना गया। योग के शरीर - विज्ञान को बाहर से नहीं जाना क्योंकि योग के अनुसार जब
गया है, या योग ने इसे किसी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से नहीं जाना है किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तब जो कुछ भी हम उस आदमी के विषय में जानते हैं, वही बात जीवित आदमी के विषय में सच नहीं होती। क्योंकि मृत व्यक्ति जीवित व्यक्ति से एकदम अलग होता है। अब वैज्ञानिकों को इस तथ्य का थोड़ा थोड़ा आभास होने लगा है कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बस एक अनुमान ही है, क्योंकि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तब शरीर कुछ अलग हो जाता है, और जब व्यक्ति जीवित होता है, तब शरीर अलग ढंग से कार्य करता है। इसलिए मृत शरीर के संबंध में हम जो कुछ भी जानते हैं, वह जीवित शरीर के साथ थोड़ा बहुत मेल खा सकता है, लेकिन एकदम वैसा ही नहीं हो सकता है।
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योग ने अंतर्जगत के माध्यम से शरीर - विज्ञान को जाना है। योग ने शरीर - विज्ञान को जीवन की जागरूकता और होश के माध्यम से आविष्कृत किया है। इसी कारण बहुत सी ऐसी बातें जिनकी योग