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इतनी तेजी से घूम रही हैं कि तुम चकरा जाओगे; तब तुम्हारा पना में रहना असंभव है। फिर कभी फिलेडेलिफिया तुम्हारे सामने से गुजर रहा होगा, तो कभी टोकियो गुजर रहा –होगा, और बार-बार... और पृथ्वी घूमती चली जा रही है, परिभ्रमण करती ही चली जा रही है।
पृथ्वी बहुत तेजी से घूम रही है, उस गति को अनुभव करने के लिए हमें थिर होना होगा। मनुष्य इतनी सदियों से पृथ्वी पर रह रहा है और केवल तीन सौ वर्ष पूर्व ही हमें गैलीलियो और
कोपरनिकस द्वारा पता चला कि पृथ्वी घूम रही है। वरना इससे पहले मनुष्य यही समझता रहा कि पृथ्वी केंद्र है, पृथ्वी गति विहीन केंद्र है और दुनिया की शेष अन्य सभी चीजें गतिशील हैं। चांद - तारे, सूर्य सभी घूम रहे हैं, केवल पृथ्वी ही थिर है और वही सभी का केंद्र है।
हमारे भीतर भी साक्षी के अतिरिक्त, विटनेस के अतिरिक्त शेष सभी कुछ गतिशील है। हमारे होश और जागरूकता के अतिरिक्त सभी कुछ निरंतर गतिवान है। जब हम इस साक्षीभाव को जान लेते हैं, या जब हम साक्षी को उपलब्ध हो जाते हैं, तभी केवल यह देख पाना संभव है कि शेष सभी कुछ कितनी तेजी से गतिवान है, शेष सभी कुछ कितनी तेजी से घूम रहा है।
अब थोड़ा एक बहुत ही जटिल बात को भी ठीक से समझ लेना। उदाहरण के लिए, अब तक तो मैं इस ढंग बोल रहा था जैसे कि भीतर के केंद्र थिर होते हैं। लेकिन वे केंद्र थिर नहीं होते हैं। कई बार काम-केंद्र हमारे सिर में होता है, काम -केंद्र हमारे सिर में गतिशील होता है, वह वहां सरक रहा होता है। इसीलिए तो हमारा मन इतना कामवासना से भर जाता है। इसीलिए हम कामवासना के संबंध मै निरंतर सोचते रहते हैं, और कामवासना से संबंधित स्वप्नों को संजोए चले जाते हैं। कई बार काम -केंद्र हमारे हाथों में सरक जाता है, और स्त्री को या पुरुष को छु लेने का मन करता है। कई बार काम -केंद्र आंखों में होत है और फिर जो कुछ भी हम देखते हैं, उसे वासना में बदल देते हैं। इसी तरह से फिर मन अश्लील हो जाता है –फिर जो कुछ भी हम देखेंगे, वह काम में, सेक्स में परिवर्तित हो जाती है। कई बार काम -केंद्र कानों में होता है, फिर जो कुछ भी हम सुनेंगे उससे हम कामुक होने लगेंगे।
फिर ऐसा संभव है कि हम मंदिर जाएं और अगर उस समय हमारा काम -केंद्र कानों में गतिमान हो रहा है, तब वहां भजन को सुनते हुए, भक्ति गान को सुनते हुए हम कामुकता का अनुभव करने लगेंगे। और साथ में चिंतित भी होने लगेंगे कि यह क्या हो रहा है? मैं मंदिर में हूं, मैं तो एक भक्त की तरह मंदिर में आया हूं, और यह क्या हो रहा है? और कई बार ऐसा भी होता है कि तुम अपनी प्रेमिका या अपनी पत्नी के बैठे हो, और वह एकदम निकट ही बैठी होती है -केवल निकट ही नहीं होती है, बल्कि आमंत्रण दे रही होती है, प्रतीक्षा कर रही होती है -और उस समय तुम्हें कामवासना की कोई इच्छा ही नहीं होती है। इसका मतलब है उस समय काम -केंद्र अपने केंद्र पर नहीं है, जहां