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होते हैं, अंतर्गामी होते हैं, आक्रामक नहीं होते, निष्क्रिय होते हैं, ग्रहणशील होते हैं। या उन्हें यांग और . यिन भी कह सकते हैं, या फिर उन्हें पुरुष और स्त्री भी कह सकते हैं। पुरुष बहिर्मुखी होता है, स्त्री अंतर्मुखी होती है। पुरुष विधायक, पॉजिटिव होता है, स्त्री निष्क्रिय, निगेटिव होती है उनकी क्रियाशीलता में भेद होता है, क्योंकि वे भिन्न - भिन्न केंद्रों से कार्य करते हैं। पुरुष कार्य करता है सूर्य – केंद्र से; स्त्री कार्य करती है चंद्र - केंद्र से ।
इसलिए सच में अगर देखा जाए तो जब पुरुष पागल होता है, तो उसे लूनाटिक नहीं कहना चाहिए। केवल जब कोई स्त्री पागल हो जाए, तो उसे लूनाटिक कहना चाहिए। पागल के लिए जो यह अंग्रेजी शब्द लूनाटिक है, यह लूनार से आया है मून-स्ट्रक यानी जो चांद से विक्षिप्त हुआ हो। जब कोई पुरुष पागल होता है तो वह सन - स्ट्रक होता है, वह मून - स्ट्रक नहीं होता। और जब कोई पुरुष पागल होता है, तो वह आक्रामक हो जाता है, हिंसा से भर जाता है। जब कोई स्त्री 'पागल होती है, तो वह बस सनकी हो जाती है, अपनी समझ खो बैठती है।
जब मैं 'पुरुष' और 'स्त्री' इन शब्दों का प्रयोग करता हूं तो मेरा अर्थ सभी पुरुष और सभी स्त्रियों से नहीं है, क्योंकि ऐसे पुरुष हैं जिनमें पुरुषत्व से अधिक स्त्रीत्व होता है, और ऐसी स्त्रियां है जिनमें स्त्रीत्व से अधिक पुरुषत्व होता है। इसलिए उलझन में मत पड़ जाना। कोई पुरुष होकर भी चंद्र केंद्रित हो सकता है और कोई स्त्री होकर भी सूर्य केंद्रित हो सकती है। उनकी ऊर्जाएं कहां से अपनी शक्ति पा रही हैं, कौन से स्रोत से ऊर्जा पा रही हैं इस पर सब निर्भर करता है।
चंद्रमा का अपना कोई ऊर्जा स्रोत नहीं होता, वह तो केवल सूर्य को ही प्रतिबिंबित करता है। चंद्रमा केवल सूर्य का प्रतिबिंब है, इसीलिए वह इतना शीतल होता है। वह सूर्य की ऊर्जा को, ऊष्णता से शीतलता में परिवर्तित कर देता है स्त्री भी काम केंद्र से ही ऊर्जा प्राप्त करती है, वह चंद्र केंद्र से
होकर गुजरती है।
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चंद्र-केंद्र हारा का केंद्र है। वह नाभि के ठीक नीचे होता है, नाभि के दो इंच नीचे एक केंद्र होता है, जापानी लोग उसे हारा कहकर पुकारते हैं। जापानी लोगों का यह शब्द हारा एकदम ठीक है। इसीलिए वे आत्महत्या को हारा - किरी कहते हैं; क्योंकि चंद्र - केंद्र मृत्यु का केंद्र होता है-जैसे सूर्य का केंद्र जीवन का केंद्र होता है। पूरा का पूरा जीवन सूर्य से आता है, और ठीक वैसे ही मृत्यु चंद्र - केंद्र से आती है।
गुर्जिएफ कहा करता था कि मनुष्य चांद का भोजन है। असल में वह पतंजलि की तरह ही कह रहा था और गुर्जिएफ उन थोड़े से लोगों में से है जो पतंजलि के एकदम निकट हैं, लेकिन पश्चिम के लोग समझ ही न सके कि गुर्जिएफ कहना क्या चाहता है। गुर्जिएफ कहा करता था कि हर चीज किसी न किसी के लिए भोजन का काम करती है। अस्तित्व की इकोलॉजी में हर चीज किसी दूसरे के लिए भोजन बन जाती है। हम कुछ खाते हैं, तो हम किसी दूसरे के द्वारा खाए जाएंगे, वरना अस्तित्व