________________
मैंने एक सूफी कथा सुनी है। एक सदगुरु के दो शिष्य मठ के बगीचे में बैठे ध्यान कर रहे थे। उनमें से एक बोला, 'अच्छा होता, अगर हमें धूम्रपान करने की इजाजत होती।'
दूसरा बोला, 'ऐसा संभव नहीं है, गुरुजी ऐसी आशा कभी नहीं देंगे।'
फिर वे दोनों आपस में कहने लगे, 'कोशिश कर लेने में क्या हर्ज है? गुरु से पूछने में क्या हर्ज है? हमें एक बार उनसे पूछ तो लेना चाहिए।'
दूसरे ही दिन उन्होंने अपने गुरु से पूछा। पहले शिष्य से गुरु ने कहा, 'नहीं, बिलकुल धूम्रपान नहीं करना है। दूसरे से उन्होंने कहा, 'हा, बिलकुल धूम्रपान कर सकते हो।' बाद में जब वे दोनों मिले, और उन्होंने बताया कि गुरु ने उनसे क्या कहा है, तो उन्हें यह भरोसा ही नहीं आया कि आखिर यह गुरु है कैसा? तो उनमें से एक ने पूछा, ' अच्छा यह बताओ कि तुमने गुरु से पूछा कैसे?'
जिससे गुरु ने कहा था-नहीं, बिलकुल धूम्रपान नहीं करना है-उसने बताया, मैंने उनसे पूछा, 'क्या मैं ध्यान करते समय धूम्रपान कर सकता हूं?' तो वे बोले, 'नहीं, बिलकुल नहीं!' फिर उसने दूसरे साथी से पूछा, 'तुमने कैसे पूछा था?'
वह बोला, 'अच्छा, अब मेरी समझ में सब आ गया। मैंने पूछा था, 'क्या मैं धूम्रपान करते समय ध्यान कर सकता हू?' तो उन्होंने कहा, 'ही, बिलकुल कर सकते हो।'
पूछने के ढंग से ही फर्क पड़ा है.। शब्द वेश्याओं की भांति होते हैं; और हम शब्दों के साथ कैसे भी खिलवाड़ कर सकते हैं।
मैं कोई व्याख्याकार नहीं हूं। जो कुछ भी मैं कह रहा हूं उसे मैं अपनी प्रामाणिकता से कह रहा हूं - पतंजलि के आधार पर नहीं कह रहा हूं। क्योंकि मेरे अनुभव और उनके अनुभव परस्पर मेल खाते हैं, इसीलिए मैं उन पर बोल रहा हूं। लेकिन मैं पतंजलि को प्रमाणित करने का प्रयास नहीं कर रहा हूं। मैं कैसे प्रमाणित कर सकता है? मैं यह प्रमाणित करने का प्रयास भी नहीं कर रहा कि पतंजलि सत्य हैं। यह मैं कैसे प्रमाणित कर सकता हूं? मैं तो केवल अपने बारे में ही कुछ कह सकता हूं। तो मैं क्या कह रहा हूं? मैं यह कह रहा हूं कि मैंने भी वही अनुभव किया है, लेकिन पतंजलि ने उसी बात को सुंदर भाषा में, सुंदर ढंग से अभिव्यक्ति दे दी है। और जहां तक वैज्ञानिक व्याख्या या वैज्ञानिक अभिव्यक्ति का प्रश्न है, तो पतंजलि में कुछ जोड़ना या उनकी बात को और परिष्कृत करना कठिन है। इसे स्मरण रखना।
अगर वे वापस लौटकर आएं, तो उनकी हालत ऐसी होगी.. मैं एक कथा पढ़ रहा था और उसे पढ़ते समय मुझे पतंजलि का स्मरण हो आया।