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उत्सुकता जानकारी एकत्रित करने में ही होती है। उनकी रुचि जानने में नहीं, बल्कि जानकारी में होती है। उनका रस ज्यादा से ज्यादा जानकारियां एकत्रित करने में होता है। वह स्वयं को बदलने के लिए तैयार नहीं होते, वह जैसे हैं वैसे ही वह बने रहना चाहते हैं और उनकी रुचि ज्यादा से ज्यादा ज्ञान और जानकारियां एकत्रित कर लेने में ही होती है। ऐसे लोग अहंकार के रास्ते पर ही चलते रहते हैं। पतंजलि इस तरह के लोगों के लिए भी नहीं हैं।
फिर उसके बाद तीसरे प्रकार के लोग हैं, जो शिष्य हैं। शिष्य वह होता है जो अपने जीवन में शिष्यत्व ग्रहण कर लेने को तैयार होता है, जो अपने संपूर्ण अस्तित्व को एक प्रयोग में परिवर्तित करने के लिए तैयार होता है, जो इतना साहसी होता है कि आंतरिक यात्रा पर जाने के लिए तैयार है-जो कि सर्वाधिक कठिन और साहसपूर्ण यात्रा है, क्योंकि उस समय व्यक्ति को यह मालूम नहीं होता कि वह कहां जा रहा है। व्यक्ति अज्ञात में कदम बढ़ा रहा होता है। व्यक्ति अपनी ही अतल गहराई में जा रहा होता है। बिना किसी नक्शे के वह अज्ञात में गतिमान हो रहा होता है। योग शिष्य के लिए है, लेकिन शिष्य पतंजलि के साथ ताल –मेल बैठा सकता है।
फिर हैं चौथी अवस्था के लोग या चौथी प्रकार के लोग, मैं उस तरह के लोगों को भक्त कहूंगा। शिष्य अपने को रूपांतरित करने के लिए राजी होता है, लेकिन फिर भी वह पूरी तरह से स्वयं को छोड़ने को, स्वयं का विसर्जन करने के लिए तैयार नहीं होता। भक्त स्वयं के विसर्जन के लिए राजी होता है।
शिष्य लंबे समय तक पतंजलि के साथ चलेगा, लेकिन आखिरी समय तक नहीं। आखिरी समय तक तो तभी चल सकेगा जब वह भक्त हो जाए। जब तक वह यह ठीक से न जान ले कि जिस रूपांतरण की बात धर्म करता है उसका रूपांतरित होने से, परिवर्तित होने से कोई संबंध नहीं है। धर्म केवल व्यक्ति को रूपांतरित ही नहीं करता है, व्यक्ति को अच्छा ही नहीं बनाता है; धर्म मृत्यु है और उसमें अपने को पूरी तरह से मिटा देना होता है। और यह जो मृत्यु है, यह है अपने अतीत से अलग हो जाने की, अपने अतीत को पूरी तरह से विस्मृत कर देने की।
जब शिष्य तैयार होता है केवल अपने को रूपांतरित करने के लिए ही नहीं, बल्कि मृत्यु के लिए तैयार होता है तो वह भक्त बन जाता है। तो भी शिष्य लंबे समय तक, दूर तक पतंजलि के साथ चल सकता है। और अगर वह ऐसे चलता चला जाता है तो एक न एक दिन वह भक्त हो जाता है। और जब शिष्य अपने को पूरी तरह से मिटा देता है, केवल तभी वह समग्र रूप से पतंजलि को उनके सौंदर्य को, उनकी भव्यता को, उस अदभुत दवार को जिसे पतंजलि अज्ञात के लिए खोल देते हैं, समझ सकता है।
लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं, जो केवल कुतूहल से भरे हुए हैं, और उन्होंने बहुत सी पुस्तकें पतंजलि के ऊपर लिखी हैं बहुत से लोग जो केवल विद्यार्थी ही हैं, उन्होंने अपनी विद्वता और पांडित्य प्रकट