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कभी किसी बच्चे को देखना । जब कोई बच्चा क्रोध में होता है तो वह पूरी तरह से क्रोध में होता हैवह क्रोध में चीजें फेंकेगा, कूदेगा, चीखेगा, चिल्लाका और जब उसका क्रोध ठंडा हो जाएगा, तो वह फिर से मुस्कुराने लगेगा और क्रोध को पूरी तरह से भूल जाएगा - इस तरह से उसका रेचन हो जाता है यही उसके रेचन का ढंग है। जब वह प्रेम से भरा होता है, तो वह तुम्हारे करीब आएगा, तुम से लिपट जाएगा और प्यार करने लगेगा। और जब बच्चा प्रेम करता है, या कुछ भी करता है, तो कभी भी किसी प्रकार के शिष्टाचार, रीति-रिवाज और ऐसी किन्हीं बातों की कोई फिकर नहीं करता। और हम भी बच्चे की बात की ज्यादा फिकर नहीं करते और यह कह कर टाल देते हैं कि अभी तो वह बच्चा यही इसका मतलब है कि बच्चा अभी विषाक्त नहीं किसी प्रकार के बंधनों में नहीं बंधा है।
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है, बड़ा नहीं हुआ है, अभी उसमें समझ नहीं है हुआ है, अभी वह शिक्षित नहीं हुआ है, अभी वह
जब भी कोई बच्चा रोना - चीखना - चिल्लाना चाहता है तो वह रोता - चीखता-चिल्लाता है। वह पूरी स्वतंत्रता में जीता है, इसलिए तो उसे किसी प्रकार के रेचन की कोई आवश्यकता नहीं होती। वह हर क्षण अपना रेचन करता ही रहता है, वह अपने भीतर किसी प्रकार की कोई ग्रंथि का निर्माण नहीं करता, वह कुछ भी संग्रह नहीं करता है। लेकिन एक का आदमी ? पचास साठ या सत्तर वर्ष के बाद वही बच्चा का हो जाएगा, तब तक वह अपने भीतर बहुत सा कूड़ा-कचरा इकट्ठा कर चुका होगा। जब उसे गुस्सा आएगा, क्रोध आएगा, वह क्रोध न कर सकेगा।
कई बार ऐसी परिस्थितियां होती हैं जब व्यक्ति क्रोध करना तो चाहता है, लेकिन कर नहीं सकताउस समय क्रोध करना परिस्थिति के अनुकूल नहीं होता है, या उसके लिए आर्थिक रूप से खतरनाक हो सकता है। जब बीस डाटता - डपटता भी है तो भी तुम्हें ऊपर से मुस्कुराना पड़ता है। वैसे अगर तुम्हारा वश चले, तो तुम उसे मार डालो, लेकिन फिर भी ऊपर से तुम मुस्कुराते चले जाते हो। फिर भीतर उठ रहा था जो क्रोध उसका क्या होगा? वह दब जाएगा, उसका दमन हो जाएगा।
सामाजिक जीवन में ऐसा ही होता है। पतंजलि के समय में लोग आदिम अवस्था में थे, वे अधिक सभ्य नहीं हु थे। अगर तुम आदिवासी क्षेत्रों में जाकर देखो, जहां आदिम जनजातिया अभी भी रहती हैं, तो स्मरण रहे उन्हें अभी भी सक्रिय ध्यान की आवश्यकता नहीं है। वे तुम पर हंसेंगे, वे कहेंगे, क्या?. यह क्या कर रहे हो तुम? यह सब करने की जरूरत क्या है? जब दिनभर का कार्य समाप्त हो जाता है, तौ रात्रि को वे नाचते हैं, गाते हैं और सारी रात नृत्य में डूबे रहते हैं। रात को बारह, एक बजे तक वे नाचते रहते हैं। ढोल की थाप पर वे सहज, प्राकृतिक रूप से नृत्य की ऊर्जा में आनंद के साथ डूबे रहते हैं और फिर बाद में वृक्षों के नीचे सो जाते हैं और दिनभर वे काम क्या करते हैं. लकड़ियां काटना, तब फिर कैसे भीतर क्रोध एकत्रित हो सकता है? वे किसी आफिस में क्लर्क तो हैं जीते हैं लकड़ी उन्हें अहिंसा
नहीं वे अभी भी सभ्य नहीं हुए हैं। वे जीवन को उसकी सहजता और सरलता में ही काटते-काटते उनके भीतर की पूरी हिंसा विलीन हो जाती है, वे अहिंसक हो जाते हैं