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हमेशा विरोध किया जाता है, लेकिन कर्म का सिद्धांत शॉक एब्जावर की तरह मौजूद रहता है। अब तुम क्या कर सकते हो? अब इसमें तो तुम्हारा कोई हाथ नहीं। तुम अपने अतीत के अच्छे कर्मों के कारण इस जन्म में धन -संपत्ति भोग रहे हो। और गरीब आदमी अपने बरे कर्मों के कारण गरीबी की पीड़ा भोग रहा है।
भारत में जैनों का एक विशिष्ट संप्रदाय है, तेरापंथ। वे इसी कर्म के सिद्धांत में विश्वास करते हैं। वे कहते हैं, 'तुम किसी के -बीच में मत आओ, क्योंकि अगर कोई आदमी पीड़ा भोग रहा है तो अपने पिछले जन्मों के कर्मों के फल के कारण भोग रहा है। उसके बीच में मत आओ। उसे कुछ भी मत दो, क्योंकि उसे कुछ देना भी उसके लिए बाधा होगी। क्योंकि हो सकता है कि वह थोड़े में कष्ट से मुक्त हो जाए। उसको सहयोग देकर तुम उसके मार्ग में रुकावट डाल रहे हो। अपने कर्मों का फल तो उसे भोगना ही पड़ेगा।'
उदाहरण के लिए, एक गरीब आदमी को तुम कुछ साल आराम से रहने लायक पर्याप्त धन-राशि दे सकते हो, लेकिन फिर पीड़ा शुरु हो जाएगी उसे इस जीवन में सुख-चैन से रहने के लिए कुछ दे सकते हो, लेकिन अगले जन्म में फिर से वही पीड़ा प्रारंभ हो जाएगी। जहां तुमने उसकी पीड़ा को रोक दिया था, ठीक वहीं से फिर पीड़ा शुरू हो जाएगी। इसलिए तेरापंथी लोग कहे चले जाते हैं कि किसी को भी बाधा मत डालना। अगर कोई आदमी सड़क के किनारे मर रहा हो, तो भी तुम तटस्थ भाव से अपने रास्ते पर चले जाना। वे कहते हैं यह करुणा है. क्योंकि बीच में आकर तुम उसके कर्मों की यात्रा में बाधा डाल देते हो।
यह सिद्धांत कितना बड़ा शॉक एब्जाहर्वर है।
भारत में लोग पूरी तरह संवेदन-हीन हो गए हैं। और ऐसे धूर्त सिद्धांत उनके कवच हैं।
पश्चिम में एक नया काल्पनिक सिद्धांत खोजा गया है अमीरों ने गरीबों का शोषण किया है - इसलिए अमीर को ही समाप्त कर दो।
इसे जरा समझना। किसी गरीब आदमी को देखकर तुम्हारे हृदय में प्रेम उमड़ने लगता है। तुम कहते हो, यह आदमी अमीर के कारण गरीब है। यह कहकर तुमने प्रेम को घृणा में बदल दिया अब तुम्हारे मन में अमीर आदमी के प्रति घृणा उठने लगती है। मन कैसे खेल खेलता है? अब तुम कहते हो, 'अमीर को मिटा दो! उनसे सब कुछ छीन लो। वे शोषक हैं, वे अपराधी हैं।'
अब भिखारी को तुम भूल गए; और अब न ही तुम्हारे हृदय में प्रेम बचा है। इसके विपरीत मन घृणा से भर जाता है, और घृणा ही उस समाज को निर्मित करती है जिसमें भिखारी होते हैं। अब घृणा फिर से तुम्हारे भीतर काम करना शुरू कर देती है। तुम ऐसा समाज बना सकते हो जिसमें वर्ग और श्रेणियां बदल जाएंगी, नाम बदल जाएंगे, लेकिन फिर भी शासक और शासित, शोषक और शोषित, दमन