________________ इसीलिए बुद्धत्व को उपलब्ध लोगों ने इस पृथ्वी पर बने रहने के लिए अलग-अलग चीजों का उपयोग अलग - अलग' ढंग से किया है, लेकिन शुद्ध करुणा का उपयोग नहीं किया जा सकता है। सच तो यह है, शुद्ध करुणा तो और- और ऊर्ध्वगामी होने में, और- और ऊपर उठने में मदद करती है। इसलिए मैं तुमसे एक शब्द कहना चाहूंगा. और वह है प्रसाद। गुरुत्वाकर्षण नीचे की ओर खींचता है और परमात्मा का प्रसाद ऊपर की ओर खींचता है। जिस क्षण व्यक्ति करुणा से आपूरित होता है, करुणा से लबालब भरा होता है; तो उस पर परमात्मा का प्रसाद काम करने लगता है उस पर परमात्मा का प्रसाद बरसने लगता है। तब व्यक्ति इतना भार-विहीन हो जाता है कि लगभग वह उड़ने की स्थिति में आ जाता है, वह उड़ने लगता है। नहीं, इसलिए ऐसा कोई पेपरवेट चाहिए जो दबाव डाल सके और वह पृथ्वी से जुड़ा रह सके। रामकृष्ण ने ऐसा ही किया; उनका पेपरवेट उनका भोजन था। वे एकदम भार-विहीन हो गए थे, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण उन पर काम नहीं कर सकता था. उन्हें पृथ्वी से जुड़े रहने के लिए किसी खूटी की आवश्यकता थी, ताकि गुरुत्वाकर्षण अपना काम करता रहे। अब तुम मुझसे पूछ रहे हो। मैं तुम से एक कथा कहना चाहंगा : चार धार्मिक व्यक्ति आपस में कोई गुप्त वार्तालाप कर रहे थे, और उस वार्तालाप में वे अपने - अपने अवगणों की चर्चा कर रहे थे। रब्बी ने कहा, 'मुझे पोर्क पसंद है।' प्रोटेस्टेंट धर्म-पुरोहित ने कहा, 'मैं बार्बन की एक बोतल एक दिन में पी जाता हूं।' पादरी ने स्वीकार किया, 'मेरी एक गर्ल फ्रेंड है।' फिर वे सब बेपटिस्ट धर्म पुरोहित की ओर आतुरता से देखने लगे कि अब वह क्या बताएगा। उसने लापरवाही से कंधे उचका दिए : 'कौन मैं? मुझे गपशप करना पसंद है।' यही मेरा उत्तर भी है -मुझे गपशप करना पसंद है। यही मेरा पेपरवेट है। यहां जो प्रवचन चल रहे हैं, और कुछ नहीं बस गपशप ही तो हैं। अगर इससे तुम्हारे अहंकार पर चोट पड़ती है, तो इन्हें तुम अस्तित्व की गपशप कह सकते हो, दिव्य की, परमात्मा की गपशप कह सकते हों लेकिन फिर भी ये प्रवचन गपशप ही हैं।