________________ जो कि हम हैं नहीं - और ऐसा होना संभव भी नहीं है। हम वही हो सकते हैं जो कि हम पहले से कुछ होना या हो जाना, एक स्वप्न है, होना ही सत्य है। लेकिन हमारे इस लोभ के कारण ही कुछ लोग हमें बताते हैं कि उपलब्ध कैसे होना है -और हम स्वीकार कर लेते हैं। हम स्वीकार इसलिए नहीं करते कि वे जो कह रहे हैं वह सत्य है, बल्कि इसलिए स्वीकार करते हैं, क्योंकि वे हमारे लोभ को, लालच को बढ़ावा दे रहे होते हैं। अगर तुम यह सीखना चाहते हो, जानना चाहते हो तो मेरे निकट आओ अपने लोभ को जाने दो। लोभ को बिदा होने दो। अभी इसी क्षण लोभ को जाने दो। इसे स्थगित नहीं करना है। ऐसा मत सोचो कि 'ही, हम भविष्य में एक न एक दिन लोभ को गिरा देंगे।' नहीं, लोभ को समझने की कोशिश करो। और लोभ के पीछे छिपी हई पीड़ा क्या होती है, इसके पीछे चला आने वाला नर्क कैसा होता है, इसे जानने -समझने की कोशिश करो। अगर तुम यह देख लेते हो और जान लेते हो कि लोभ से नर्क और पीड़ा ही मिलती है, तो फिर क्यों कल? फिर इसी अंतर्दृष्टि और समझ के साथ ही लोभ मिट जाता है। सच तो यह है, तुम ही लोभ को नहीं छोड़ना चाहते हो, वरना वह तो स्वयं ही गिर जाता है। और जब उपलब्धि का विचार ही मूढ़तापूर्ण है, तो फिर यह पूछने में भी क्या सार है कि संबोधि अचानक मिलेगी या धीरे -धीरे क्रमिक रूप से मिलेगी? फिर यह सभी बातें अप्रासंगिक हो जाती हैं। तुम वही हो -इसे अपना सतत स्मरण बनने दो। क्षण भर के लिए भी यह मत भूलो कि तुम परमात्मा हो, तुम परम शक्ति हो। स्त्री -पुरुष की भाषा में सोचना छोड़ो! ऐसी व्यर्थ की बातों को भूल जाओ। स्मरण रहे कि तुम परमात्मा हो, परम शक्ति हो। इससे कम पर कभी राजी मत होना। तो मुझे तुम्हारी गलत धारणाओं को मिटा डालना है। वै गलत धारणाएं तुम में जरूरत से ज्यादा भर दी गयी हैं -आध्यात्मिकता के नाम पर सदियों -सदियों से उन्हें बेचा जाता रहा है। मैं तुमसे एक कथा कहना चाहूंगा: एक कैथोलिक युवती और एक यहूदी युवक एक दूसरे के प्रेम में पड़ गए। लेकिन उन दोनों के धर्म और उनके कायदे -कानून और विश्वास अलग-अलग थे। आयरिश कैथोलिक मां ने अपनी बेटी को सलाह दी कि वह 'उस युवक को अपने धर्म से परिचित करवाए। उसे बताए कि कैथोलिक होने का क्या मजा है और कैसा आनंद है। उस युवती की मां ने कहा कि सबसे पहले तो उस युवक को कैथोलिक बनाओ।'