________________ रामकष्ण की पत्नी शारदा तो इस बात पर भरोसा ही न कर सकी। वैसे भी पत्नियों को अपने पतियों की बात पर भरोसा करना थोड़ा कठिन होता है-फिर चाहे रामकृष्ण परमहंस जैसा ही पति क्यों न हो, उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता है। पत्नी ने तो यही सोचा होगा कि रामकृष्ण मजाक कर रहे हैं, या फिर मूर्ख बना रहे हैं। शारदा को ऐसी हालत में देखकर रामकृष्ण बोले, 'देखो, मैं समझ सकता ह कि तुम लोग मुझ पर भरोसा नहीं करोगे, लेकिन एक दिन तुम जान लोगी। जिस दिन मेरी मृत्यु आने को होगी, उसके तीन दिन पहले, मेरी मृत्यु के तीन दिन पहले, मैं भोजन की ओर देखूगा भी नहीं। तुम मेरी भोजन की थाली भीतर लाओगी और मैं दूसरी ओर देखने लगूंगा; तब तुम जान लेना कि मुझे केवल तीन दिन ही यहां इस शरीर में और रहना है।' शारदा को रामकृष्ण की बात पर भरोसा नहीं आया, और धीरे-धीरे वे लोग इस बारे में भूल ही गए। फिर रामकृष्ण के देह त्याग के ठीक तीन दिन पहले जब रामकृष्ण लेटे हुए थे, शारदा भोजन की थाली लायीं रामकृष्ण करवट बदलकर दूसरी ओर देखने लगे। अचानक शारदा को रामकृष्ण की बात स्मरण आई। और तभी शारदा के हाथ से थाली छूट गयी, और वह फूट-फूटकर रोने लगी। रामकृष्णा शारदा से बोले, ' अब रोओ मत। मेरा कार्य अब समाप्त हो गया है, मझे अब किसी भी चीज को पकड़ने की आवश्यकता नहीं है। और ठीक तीन दिन बाद रामकृष्ण ने देह त्याग दी। रामकृष्ण करुणावश भोजन को पकड़े हए थे। बस, भोजन के माध्यम से वे अपने को शरीर में बांधे हए थे। जब बंधन की अवधि समाप्त हो गई, तो उन्होंने शरीर छोड़ दिया। वे करुणावश ही इस किनारे पर थोड़ा और बने रहने के लिए शरीर से बंधे हुए थे। ताकि जो लोग उनके आसपास एकत्रित हो गए थे, वे उनकी मदद कर सकें। लेकिन रामकृष्ण परमहंस जैसे लोगों को समझ पाना कठिन होता है। ऐसे आदमी को समझना कठिन होता है जो सिद्ध हो गया है, बुद्ध हो गया है, जिसने अपने समस्त संचित कर्मों का कंड खाली कर दिया है, ऐसे आदमी को समझ पाना बहत कठिन होता है। उसके पास इस शरीर में बने रहने के लिए कोई गुरुत्वाकर्षण नहीं रह जाता है, इसीलिए रामकृष्ण भोजन के सहारे अपने को बांधे हुए थे। चट्टान में गुरुत्वाकर्षण होता है। वह भोजन की चट्टान को पकड़े हुए थे, ताकि वे और थोड़ी देर इस पृथ्वी पर रह सकें। जब व्यक्ति के पास संयम आ जाता है, और उसकी चेतना पूर्णरूप से जागरूक हो जाती है, तब यह जाना जा सकता है कि कितने कर्म और शेष हैं। यह ठीक ऐसे ही है जैसे कि कोई चिकित्सक आकर आदमी की नाड़ी छकर देखता है और बताता है कि, बस अब यह आदमी दो या तीन घंटे से ज्यादा जिंदा नहीं रहेगा। जब चिकित्सक यह कह रहा है तो वह क्या कह रहा है? अपने अनुभव के आधार पर वह जान लेता है कि जब कोई व्यक्ति मृत्यु के करीब होता है, तो उसकी नाड़ी किस भांति स्पंदित होती है, उसकी नाड़ी किस तरह से चलने लगती है। ठीक उसी तरह से, जो व्यक्ति जागरूक है वह यह जान लेता है कि उसका कितना प्रारब्ध कर्म और शेष रहा है -कितनी श्वासें और बची हैंऔर वह जानता है कि उसे कब जाना है।