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प्रवचन 71 - मृत्यु और कर्म का रहस्य
योग-सूत्र:
सोपक्रम निरूपक्रमं च कर्म तत्संयमादपरान्तज्ञानमरिष्टेभयो वा।। 23।।
सक्रिय व निष्किय या लक्षणात्मक व विलक्षणात्मक-इन दो प्रकार के कर्मों पर संयम पा लेने के बाद मृत्यु की ठीक-ठीक घड़ी की भविष्य सूचना पायी जा सकती है।
मैत्र्यादिषु बलानि।। 24।।
मैत्री पर संयम संपन्न करने से या किसी अन्य सहज गुण पर संयम करने से उस गुणवत्ता विशेष में बड़ी सक्षमता आ मिलती है।
बलेषु हस्तिबलादीनि।। 25//
हाथी के बल पर संयम निष्पादित करने से हाथी की सी शक्ति प्राप्त होती है।
प्रवृत्यालोकन्यासात्सूक्ष्मव्यवहितविप्रकृष्टज्ञानम्।। 26।।
पराभौतिक मनीषा के प्रकाश को प्रवर्तित करने से सूक्ष्म का बोध होता है। प्रच्छन्न का अोर दूरस्थ तत्वों का ज्ञान प्राप्त होता है।
भवनज्ञानं सूर्ये संयमात्।। 27।।
सूर्य पर संयम संपन्न करने से संपूर्ण सौर-ज्ञान की उपलब्धि होती है।