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और ऐसा नहीं है कि ऐसा जान -बूझकर किया जाता है। असल में योगी तो कभी कुछ करता ही नहीं है। वह तो बस अपने अस्तित्व के केंद्र में प्रतिष्ठित रहता है और उसके आसपास घटनाएं घटती रहती हैं। सच तो यह है, योगी इन घटनाओं से बचना चाहता है, लेकिन फिर भी उसके आसपास
घटनाएं घटती रहती हैं, चमत्कार घटित होते रहते हैं। हालांकि कोई चमत्कार इत्यादि हैं नहीं, लेकिन जो समाधि को उपलब्ध हो जाता है, उसके पास चमत्कार घटित होते ही रहते हैं। जो व्यक्ति समाधि को उपलब्ध हो जाता है, उस व्यक्ति के पीछे-पीछे छाया की भांति चमत्कार चले आते हैं।
इसे ही मैं धर्म का विज्ञान कहता ह। पतंजलि ने धर्म के विज्ञान के आधार दिए हैं। लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना शेष है। पतंजलि ने तो केवल उसका एक ढांचा दे दिया है-अभी उन अंतरालों में, गेपों में बहुत कुछ भरना है। वह तो केवल एक सीमेंट-काक्रीट का ढांचा है, अभी उसके ऊपर दीवारें खड़ी करनी हैं, भवन का निर्माण करना है। केवल सीमेंट-काक्रीट के ढांचे में रहना संभव नहीं है। अभी उस ढांचे पर भवन का निर्माण करना है। लेकिन फिर भी पतंजलि ने एक आधारभूत संरचना तो दे ही दी है।
और पतंजलि को हए पांच हजार साल बीत गए हैं और भवन की नींव अभी नींव ही है, वह अभी तक मनुष्य के रहने लायक भवन नहीं बन पाया है। आदमी अभी भी परिपक्व नहीं हुआ है। आदमी खिलौनों से खेलता रहता है, और जो होने के लिए वह आया है, जो उसकी वास्तविकता है वह उसकी प्रतीक्षा ही करती रहती है -इस बात की प्रतीक्षा कि जब भी कभी आदमी पूर्ण रूप से परिपक्व होगा तो उसका उपयोग करेगा। और इसके लिए कोई दूसरा जिम्मेवार नहीं है, हम ही इसके लिए जिम्मेवार हैं। इस पृथ्वी को जिस विराट मूर्छा ने घेरा हआ है, उसके लिए हम सभी जिम्मेवार हैं। मेरे देखे तो यह ऐसा ही है जैसे कि एक कुहासा पूरी पृथ्वी पर छाया हुआ हो, और मनुष्य गहन मूर्छा में सो रहा हो।
मैंने सुना है एक दिन ऐसा हुआ. एक बहुत ही परिश्रमी समाज सेविका ने सड़क पर लड़खड़ाते हुए शराब में धुत्त एक आदमी से पूछा, ' ओ भलेमानस, ऐसी कौन सी बात है जो तुम्हें इस तरह शराब पीने के लिए मजबूर कर देती है?'
खुशी में झूमता हुआ वह शराबी लापरवाही से बोला, 'मैडम, कोई मुझे मजबूर नहीं करता। मैं वालंटियर हूं, मैं स्वेच्छा से ऐसा करता हूं।'
मनुष्य अपनी इच्छा से अंधकार में जी रहा है। स्वेच्छा से ही मनुष्य अधंकार में जीता है। किसी ने भी हमें अंधकार में रहने के लिए मजबूर नहीं किया है। उस अंधकार से बाहर आने की जिम्मेवारी हमारी अपनी है। शैतान को और दुष्ट राक्षसी शक्तियों को दोष मत देना कि वे हमें बिगाड़ रहे हैं। कोई भी ऐसी शक्ति नहीं है जो हमें बिगाड़ सके। हम स्वयं ही इसके लिए जिम्मेवार हैं। और जब