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इसीलिए अगर किसी गरम देश में काले रंग के कपड़े पहनो, तो बहुत गरमी महसूस होती है। तेज धूप में काले रंग के कपड़े मत पहनना। क्योंकि तब बहुत अधिक गरमी लगेगी, क्योंकि काला रंग सूरज की प्रत्येक किरण को सोखता चला जाता है। सफेद रंग ठंडा और शीतल होता है। सफेद रंग को देखने मात्र से ही ठंडक का अहसास होता है। सफेद रंग के कपड़े पहनने से शीतलता अनुभव होती है, क्योंकि सफेद रंग अपने में कुछ भी आत्मसात नहीं करता, वह सभी सुरज की किरणों को वापस फेंक देता है।
भारत में जैन धर्म ने त्याग की परंपरा के कारण ही अपना रंग सफेद चना-क्योंकि जैन धर्म में सभी का त्याग कर देना होता है। सफेद रंग त्याग का प्रतीक है। सफेद रंग सभी कुछ वापस फेंक देता है, अपने में कुछ भी समाविष्ट नहीं करता। मृत्यु को सभी जगह कालिमा की भांति चित्रित किया जाता है, क्योंकि काला रंग सभी अपने में सोख लेता है, उससे कुछ भी वापस नहीं आता है, सभी कुछ उसमें समाहित हो जाता है और उसमें खो जाता है। काला रंग एक ब्लैक होल की तरह होता है। शैतान को सभी जगह काले के रूप में ही चित्रित किया जाता है, बुराई को भी काले की भांति ही चित्रित किया जाता है, क्योंकि काले रंग में किसी भी चीज को त्यागने की क्षमता नहीं होती। काला रंग पजेसिव होता है। वह कुछ भी वापस नहीं दे सकता है; वह कुछ भी बांट नहीं सकता है।
हिंदुओं ने अपने संन्यासियों के लिए एक विशेष कारण से गेरुआ या भगवा रंग को अपना रंग चुना है, क्योंकि लाल किरणें वापस प्रतिबिंबित हो जाती हैं। लाल किरणे शरीर में प्रवेश करके कामकता और हिंसा को जन्म देती हैं। लाल रंग हिंसा का, खन का रंग है। लाल किरण शरीर में पहुंचकर हिंसा, कामकता, उद्वेग, अशांति को जगाती है। अब तो वैज्ञानिक भी कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को ऐसे कमरे में छोड़ दिया जाए जो कि पूरी तरह लाल हो, तो सात दिन के भीतर वह आदमी पागल हो जाएगा। और किसी भी चीज की जरूरत नहीं है; बस सात दिन तक लगातार लाल रंग को देखने से ही वह पागल हो जाएगा। कमरे में -पर्दे, फर्नीचर हर सामान, हर चीज लाल हो -यहां तक कि दीवारें भी लाल हों। तो सात दिन के भीतर व्यक्ति पागल हो जाएगा; लाल रंग उसके लिए असहनीय हो जाएगा।
हिंदुओं ने अपने लिए लाल रंग और लाल रंग से मिलते -जुलते रंगों को चुना है, जैसे नारंगी गैरिक
और इसी तरह के दूसरे रंग। क्योंकि वे आदमी के भीतर की उत्तेजना और हिंसा को कम करने में सहयोगी होते हैं। लाल किरण वापस फेंक दी जाती है, वह शरीर के भीतर प्रविष्ट नहीं हो पाती।
पतंजलि कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति अपने पर पड़ने वाली सारी किरणों को सोख ले, तो फिर वह अदृश्य हो सकता है। फिर उसे देख सकना संभव नहीं है। फिर तो बस एक रिक्तता, काली रिक्तता दिखाई दे सकती है, लेकिन व्यक्ति अदृश्य हो जाएगा। योगी ऐसा कैसे कर पाता है? और कई बार योगी ऐसा करते हैं। योगी के साथ कई बार ऐसा होता है और योगी को इसका पता भी नहीं होता है। अत: इसकी पूरी प्रक्रिया को ठीक से समझ लें।