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________________ फिर समझो कि मैं दर्पण मात्र हूं। तुम मेरे सामने आते हो. उस समय प्रतिबिंब बनता है और फिर प्रतिबिंब चला जाता है। दर्पण फिर खाली का खाली हो जाता है। मैं यहां पर व्यक्ति के रूप में मौजूद नहीं हूं। मैं तो केवल एक शून्यता की भांति तुम्हारे बीच मौजूद हूं इसलिए तुम्हारे प्रश्नों या विचारों के उत्तर देना मेरे लिए किसी तरह का कोई प्रयास नहीं है। और बात एकदम सीधी और साफ है, चूंकि तुम मेरे सामने मौजूद होते हो, तो जैसे तुम हो, मैं तुम्हें वैसा का वैसा प्रतिबिंबित कर देता हूं। और दर्पण के लिए प्रतिबिंब करना कोई प्रयास नहीं है.....। किसी ने माइकल स्थूलों से पूछा, 'तुम्हारे कार्य में एक तरह की अंतःप्रेरणा मालूम होती है। माइकल एंजलो ने कहा, 'ही, तुम ठीक कहते हो। ऐसा ही है। लेकिन वह केवल एक प्रतिशत ही है। एक प्रतिशत अंतःप्रेरणा है और निन्यानबे प्रतिशत मेरा अथक श्रम है।' और वह ठीक कहता है। लेकिन मेरे साथ अथक श्रम जैसी कोई बात नहीं है। मेरे साथ तो सौ प्रतिशत अंतःप्रेरणा ही है। मैं तुम्हारी समस्याओं के बारे में नहीं सोचता हूं। यहां तक कि मैं तुम्हारी बिलकुल फिक्र ही नहीं करता हूं। मैं तुम्हारे लिए चिंतित नहीं हूं। मैं तुम्हारी किसी तरह की कोई मदद करने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। तुम मौजूद हो, मैं मौजूद हूं. बस, इस मौजूदगी में ही दोनों के बीच कुछ घटित हो जाता है - मेरे शून्य और तुम्हारी उपस्थिति के बीच कुछ घटित हो जाता है जिसका न तो मेरे से कोई संबंध है, और न ही जिसका तुम्हारे साथ कुछ संबंध है। बस, ऐसे ही जैसे एक खाली, रिक्त, शून्य घाटी में तुम कोई गीत गाते हो, और खाली घाटी उसे दोहरा देती है, उसे प्रतिध्वनित कर देती है। तो इससे कुछ अंतर नहीं पड़ेगा कि तुम यहां पर रहो या कि पश्चिम में रहो। अगर तुम्हें अपने भीतर कुछ अंतर महसूस होता है, तो वह तुम्हारे ही कारण है, मेरे कारण नहीं। जब तुम मेरे निकट होते हो, मेरे करीब होते हो, तो तुम ज्यादा खुला हुआ अनुभव करते हो। और यह भी तुम्हारा विचार मात्र ही है तुम्हारी ही धारणा है कि तुम यहां पर हो, इसलिए तुम ज्यादा खुला हुआ अनुभव करते हो। फिर जब तुम पश्चिम चले जाते हो, यह भी तुम्हारी ही धारणा है, तुम्हारा ही विचार है –कि अब तुम मुझसे बहुत दूर हो, अब तुम मेरे प्रति खुले हुए कैसे हो सकते हो -इस धारणा और विचार के कारण तुम बद हो जाते हो। इस धारणा को गिरा देना। और जहां कहीं भी तुम हो, मैं तुम्हें उपलब्ध रहता है। क्योंकि मेरी उपस्थिति कोई व्यक्तिगत उपस्थिति नहीं है, इसलिए इसे समय और स्थान से नहीं जोड़ा जा सकता है। इसका समय और स्थान से कोई संबंध नहीं है। तुम चाहे पश्चिम चले जाओ, या पृथ्वी के किसी भी छोर पर चले जाओ, लेकिन बस तुम मेरे प्रति खुले हुए रहना। और इसे थोड़ा आजमाकर देखना। तुम में से बहुत से लोग यहां से जाने को हैं। रोज सुबह, भारतीय समय के अनुसार आठ बजे, उसी भांति बैठ जाना जैसे कि तुम यहां बैठते हो। और तुम उसी तरह प्रतीक्षा करना जैसे कि तुम यहां प्रतीक्षा करते हो, और तुरंत तुम्हें अनुभव होगा कि तुम्हारी
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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