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सकता है। धर्म तो केवल समझ से ही संभव हो सकता है। और पतंजलि का पूरा प्रयास ही यह है कि धर्म भय रहित हो।
लेकिन लोग हैं कि पतंजलि की भी व्याख्या किए चले जाते हैं। वे अपने अनुरूप उनकी व्याख्याएं करते चले जाते हैं और फिर उनकी व्याख्याओं में पतंजलि तो खो जाते हैं। वे पतंजलि के नाम पर अपने ही हृदय की धड़कनों को सुनने लगते हैं।
किसी छोटे से स्कूल में एक शिक्षक ने देर से आने वाले एक विदयार्थी से पूछा, 'तुम देर से क्यों आए?'
'ठीक है, बताता हूं। नीचे गली में एक सूचना लिखी हुई थी...... '
शिक्षक बीच में ही टोकते हुए विद्यार्थी से बोला, ' भला उस सूचना का इस बात से क्या संबंध हो सकता है?'
विदयार्थी ने कहा, 'उस पर लिखा था कि आगे स्कूल है, धीरे चलो।'
यह सब तुम पर निर्भर करता है कि जब तुम पतंजलि को पढ़ोगे तो क्या समझोगे, क्या उनकी व्याख्या करोगे। जब तक तुम स्वयं को हटाकर एक ओर न रख दोगे। तब तक तुम जो भी समझोगे गलत ही समझोगे। समझ केवल तभी संभव है जब तुम अनुपस्थित हो जाओ -तुम किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करो, कोई अवरोध खड़ा न करो, बीच में कोई बाधा न डालो, उस पर किसी तरह का कोई रंग न चढाओ, कोई रूप, आकार नहीं दो। तुम केवल द्रष्टा होकर-बिना किसी धारणा, बिना किसी पूर्वाग्रह के समझने का प्रयास करो।
अब सूत्रों की बात करें
'आधारभूत प्रक्रिया में छिपी अनेकरूपता दवारा रूपांतरण में कई रूपांतरण घटित होते हैं।'
तुमने बहुत से चमत्कारों के विषय में, बहुत सी सिद्धियों के विषय में सुना होगा। पतंजलि कहते हैं कि किसी चमत्कार की कोई संभावना नहीं है. सभी चमत्कार एक सुनिश्चित नियम के अनुसार ही घटित होते है, या एक सुनिश्चित नियम का ही अनुसरण करते हैं। शायद तुम उस नियम को जानते हो। जब नियम ज्ञात नहीं होता है, तो लोग अपने अज्ञान के कारण सोचते हैं कि यह कोई चमत्कार है। पतंजलि किन्हीं चमत्कार इत्यादि में विश्वास नहीं करते। वे अपनी समझ, अपने ज्ञान में पूर्णत: वैज्ञानिक हैं। वे कहते हैं कि अगर कोई चमत्कार जैसा मालूम होता है, तो जरूर पीछे में कहीं कोई नियम भी विद्यमान होगा। हो सकता है शायद नियम के विषय में कुछ मालूम न हो, शायद तुम उस नियम से अनभिज्ञ हों-यहां तक कि जो व्यक्ति चमत्कार दिखा रहा हो, उसे भी शायद नियम का