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समाज को सैनिकों की, बमों की, हथियारों की आवश्यकता है, समाज को पूजा -प्रार्थना, प्रेम की आवश्यकता नहीं है।
तो अगर तुम अपने स्वभाव के अनुकूल काम करते हो, तो समाज उसके बदले में तुम्हें कुछ न देगा, तुम दरिद्र भी रह सकते हो। लेकिन एक बात मैं तुमसे कहना चाहूंगा कि वह दरिद्रता, वह जोखम जीने योग्य है, क्योंकि तब तुम्हारे भीतर की समृद्धि तुम्हें मिल जाएगी। जहां तक बाह्य संसार का संबंध है, तुम गरीब आदमी के रूप में मर सकते हो, लेकिन जहां तक तुम्हारे अंतर – अस्तित्व का संबंध है तुम सम्राट की भांति मरोगे -और अंतत: उसका ही मूल्य है।
पांचवां प्रश्न:
मेरा शरीर रोगी है मेरा मन वैज्ञानिक ढंग से भोगी है और मेरा हृदय करीब-करीब योगी है। मुझमें बच्चे जैसी प्रामाणिकता, भोलापन निर्दोषता और सच्चाई है। क्या मेरे इस जन्म में संबदध होने की कोई संभावना है? कृपया मेरा मार्ग-दर्शन करें एवं प्रभु के राज्य में प्रवेश में मेरी मदद करें
वैसे तो मैं हर हाल के लिए तैयार हैं लेकिन फिर भी आशा अच्छे की ही रखता हं।
रीर अगर स्वस्थ हो तो सहायक होता है, लेकिन यह कोई अंतिम शर्त नहीं है-शरीर स्वस्थ हो
तो सहायक तो होता है लेकिन फिर भी आवश्यक नहीं है। अगर तुम शरीर के साथ बने हुए तादात्म्य को गिरा दो, अगर यह अनुभव करने लगो कि तुम शरीर नहीं हो, तब फिर कुछ फर्क नहीं पड़ता कि शरीर अस्वस्थ है कि स्वस्थ। अगर तुम शरीर के पार चले जाते हो, उसका अतिक्रमण करने लगते हो, उसके साक्षी बनने लगते हो, तब रोगी शरीर में भी रहकर संबोधि मिल सकती है।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम सभी बीमार हो जाओ। मेरा कहने का अभिप्राय इतना ही है कि अगर
र बीमार भी हो तो निराश मत होना, अपने को असहाय अनुभव मत करना। अगर शरीर स्वस्थ हो तो सहायक अवश्य होता है। स्वस्थ शरीर का अतिक्रमण करना, एक अस्वस्थ शरीर की अपेक्षा कहीं ज्यादा आसान होता है, क्योंकि अस्वस्थ शरीर थोड़ा तुम्हारा ध्यान मांगता है। अस्वस्थ
शरीर को भुला पाना कठिन होता है। वह निरंतर दुख, पीड़ा और अस्वस्थता की याद दिलाता रहता है। वह निरंतर तुम्हारा ध्यान अपनी ओर खींचता रहता है। अस्वस्थ शरीर की देखभाल करना आवश्यक