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प्राणायाम के पश्चात संभावना होती है प्रत्याहार की; क्योंकि प्राणायाम तुम्हें लय दे देगा। अब तुम जानते हो सारे विस्तार को : तुम जानते हो कि किस लय में तुम निकटतम होते हो घर के और किस लय में तुम सर्वाधिक दूर होते हो स्वयं से हिंसक कामोन्मत्त, क्रोधित, ईर्ष्याग्रस्त, तुम पाओगे । कि तुम बहुत दूर हो गए हो अपने से करुणा में, प्रेम में, प्रार्थना में, अनुग्रह में, तुम स्वयं को घर के 'गदा निकट पाओगे।
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प्राणायाम के पश्चात प्रत्याहार वापस लौटना संभव होता है। अब तुम्हें मालूम है मार्ग तो तुम पहले से ही जानते हो कि कैसे कदम वापस लौटाने हैं।
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फिर है धारणा । प्रत्याहार के बाद, जब तुमने घर लौटना आरंभ कर दिया होता है, जब तुम अपने अंतरतम केंद्र के निकट आने लगते हो, तो तुम अपने अस्तित्व के द्वार पर ही होते हो प्रत्याहार तुम्हें द्वार के निकट ले आता है। प्राणायाम बाहर से भीतर के लिए एक सेतु है। प्रत्याहार द्वार है, और तब संभावना होती है धारणा की, एकाग्रता की। अब तुम अपने मन को एक ही लक्ष्य पर एकाग्र कर सकते हो।
पहले तुमने अपने शरीर को दिशा दी, पहले तुमने अपनी जीवन ऊर्जा को दिशा दी अब तुम अपनी चेतना को दिशा दो । अब चेतना को यूं ही कहीं भी और हर कहीं नहीं भटकने दिया जा सकता। अब उसे एक लक्ष्य पर लगाना होता है। यह लक्ष्य है एकाग्रता, ' धारणा' : तुम अपनी चेतना को एक ही बिंदु पर लगा देते हो ।
जब चेतना एक ही बिंदु पर एकाग्र हो जाती है तो विचार खो जाते हैं, क्योंकि विचार केवल तभी संभव हैं जब तुम्हारी चेतना निरंतर उछल-कूद कर रही होती है किसी बंदर की भांति; तब बहुत विचार चलते रहते हैं और तुम्हारा पूरा मन भर जाता है भीड़ से एक बाजार होता है। अब संभावना है—प्रत्याहार, प्राणायाम के बाद संभावना है कि तुम एक ही बिंदु पर एकाग्र हो सकते हो।
और जब तुम एक बिंदु पर एकाग्र हो सकते हो, तब संभावना है ध्यान की धारणा में तुम अपने मन को एक बिंदु पर एकाग्र करते हो। ध्यान में तुम उस बिंदु को भी छोड़ देते हो। अब तुम पूरी तरह केंद्रित हो जाते हो, कहीं गति नहीं करते। क्योंकि गति करने का अर्थ है बाहर की ओर गति करना। ध्यान के दौरान आया एक विचार भी तुमसे बाहर ही है कोई विषय मौजूद है; तुम अकेले नहीं हो; दो हैं। धारणा तक दो होते हैं- विषय और तुम । धारणा के बाद उस विषय को भी गिरा देना पड़ता है।
सारे मंदिर तुम्हें केवल धारणा तक ही ले जाते हैं। वे तुम्हें इसके पार नहीं ले जा सकते, क्योंकि सारे मंदिरों में ध्यान के लिए विषय होता है उनमें ध्यान के लिए ईश्वर की मूर्ति होती है। सारे मंदिर तुम्हें केवल धारणा तक ले जाते हैं। इसीलिए जितना कोई धर्म ऊंचा उठता है, मंदिर और मूर्ति तिरोहित हो जाते हैं। उन्हें हो ही जाना चाहिए तिरोहित मी दर को नितांत शून्य होना चाहिए, ताकि केवल तुम्हीं हो वहां और कोई नहीं, और कोई भी नहीं, कोई विषय नहीं विशुद्ध आत्मबोध ध्यान