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तंत्र में, जहां कामवासना के विषय में और कामवासना के रूपांतरण के विषय में बहुत काम हुआ है, वहां उन्होंने श्वास की लय पर बहुत खोज की है। यदि दो प्रेमी संभोग के दौरान श्वास को लयबद्ध रख सकें, समस्वर रख सकें, दोनों की लय वही बनी रहे, तो कोई स्खलन नहीं होगा। वे घंटों संभोग कर सकते हैं। क्योंकि स्खलन केवल तभी होता है, जब श्वास लयबद्ध नहीं होती; केवल तभी शरीर ऊर्जा बाहर फेंक सकता है। यदि श्वास लयपूर्ण है, तो शरीर ऊर्जा को आत्मसात कर लेता है; वह उसे बाहर नहीं फेंकता।
तंत्र ने बहुत सी विधियां विकसित की हैं श्वास की लय बदलने की। तब तुम घंटों संभोग कर सकते हो और तुम ऊर्जा खोते नहीं हो। बल्कि उलटे तुम्हें ऊर्जा प्राप्त होती है, क्योंकि अगर कोई स्त्री किसी पुरुष से प्रेम करती है और कोई पुरुष किसी स्त्री से प्रेम करता है, तो वे एक-दूसरे की मदद करते हैं ऊर्जावान होने में क्योंकि वे विपरीत ऊर्जाएं हैं। जब विपरीत ऊर्जाएं मिलती हैं और एक विद्युतधारा निर्मित करती हैं, तो वे एक दूसरे को उददीप्त करती हैं; वरना तो ऊर्जा खो जाती है और संभोग के बाद तुम हारा- थका, दीन-हीन अनुभव करते हो। इतनी आशा-और हाथ कुछ नहीं लगता, हाथ खाली के खाली रह जाते हैं।
आसन के बाद बारी आती है प्राणायाम की। थोड़े दिन गौर करना और इस पर ध्यान देना : जब तुम क्रोधित होते हो तो तुम्हारी श्वास की लय क्या होती है-उच्छवास ज्यादा देर होता है या अंतःश्वसन ज्यादा देर होता है या वे बराबर होते हैं? या श्वास का भीतर लेना थोड़ी देर होता है और श्वास का बाहर निकाला जाना ज्यादा देर होता है, या उच्छवास बहुत कम होता है और अंत श्वसन ज्यादा होता है? जरा ध्यान देना श्वास लेने और श्वास छोड़ने के अनुपात पर। जब तुम कामवासना से भरे होते हो, तो ध्यान देना, खयाल में लेना।
जब कभी मौन बैठे होते हो और रात देख रहे होते हो आकाश को, चारों तरफ मौन है, तो ध्यान देना कि तुम्हारी श्वास कैसी चल रही है। जब तुम करुणा अनुभव कर रहे होते हो, तो ध्यान देना, खयाल में लेना। जब तुम लड़ने-झगड़ने की भाव-दशा में हो, तब ध्यान देना, नोट करना श्वास की गति को। जरा एक चार्ट बनाओ अपनी श्वास का, और तुम्हें बहुत सी बातें खयाल में आएंगी। और प्राणायाम कोई ऐसी बात नहीं है जो तुम्हें सिखाई जा सके। तुम्हें उसे खोजना पड़ता है, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की श्वास की लय अलग-अलग होती है। हर व्यक्ति की श्वास और उसकी लय उतनी ही भिन्न होती है जितनी कि अंगूठे की छाप। श्वास एक वैयक्तिक घटना है, इसलिए मैं उसे कभी सिखाता नहीं। तुम्हें स्वयं खोजनी होती है अपनी लय। तुम्हारी लय किसी दूसरे की लय नहीं हो सकती। या हो सकता है किसी दूसरे के लिए वह हानिकारक भी हो। तुम्हारी लय तुम्हें ही खोजनी है।
और कठिन नहीं है यह बात। किसी विशेषज्ञ से पूछने की भी जरूरत नहीं है। बस, एक चार्ट बना लेना महीने भर की अपनी सारी भाव-दशाओं और अवस्थाओं का। और तुम्हें पता चलता है कि