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और यही है अशुद्धि : जो तुम नहीं हो, वही अपने को मान लेना अशुद्धि है। मेरी बात का गलत अर्थ मत लगा लेना, क्योंकि संभावना सदा यही है कि तुम इसे गलत समझ लो कि शरीर अशुद्धि है। मैं यह नहीं कह रहा हूं। तुम्हारे पास एक बर्तन में शुद्ध पानी है और दूसरे में शुद्ध दूध है। दोनों को मिला दो अब पानी मिला दूध दुगना शुद्ध नहीं हो जाता। दोनों शुद्ध थे पानी शुद्ध था, : एकदम गंगा का पानी, और दूध शुद्ध था। अब तुम दो शुद्धताएं मिलाते हो और एक अशुद्धता पैदा हो जाती है। ऐसा नहीं होता कि शुद्धता दोहरी हो गई क्या हुआ? तुम पानी और दूध के इस मिश्रण को अशुद्ध क्यों कहते हो?
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अशुद्धता का अर्थ है किसी विजातीय, बाहरी तत्व का प्रवेश, उसका प्रवेश जो कि इससे संबंध नहीं रखता, जो इसके लिए स्वाभाविक नहीं, जो आरोपित है, जिसने इसके क्षेत्र में अनुचित प्रवेश किया है। केवल ऐसा ही नहीं है कि दूध अशुद्ध हो गया है, पानी भी अशुद्ध हो गया है। दो शुद्धताएं मिलती हैं और दोनों अशुद्ध हो जाती हैं।
तो जब मैं कहता हूं अशुद्धता छोड़ो, तो मेरा यह अर्थ नहीं है कि तुम्हारा शरीर अशुद्ध है, मेरा यह अर्थ नहीं है कि तुम्हारा मन अशुद्ध है, मेरा यह भी अर्थ नहीं है कि तुम्हारे भाव अशुद्ध हैं। कुछ अशुद्ध नहीं है - लेकिन जब तुम तादात्म्य कर लेते हो, तो उस तादात्म्य में अशुद्धि है। हर चीज शुद्ध है। तुम्हारा शरीर शुद्ध है यदि वह अपने से ही क्रियाशील हो और तुम उसमें कोई हस्तक्षेप न करो। तुम्हारी चेतना शुद्ध है यदि वह अपने से ही गतिशील हो और शरीर कोई दखल न दे। यदि तुम अतादात्म्य की भाव- दशा में जीते हो तो तुम शुद्ध हो। हर चीज शुद्ध है। मैं शरीर की निंदा नहीं कर रहा हूं। मैं कभी निंदा नहीं करता किसी चीज की। इसे सदा स्मरण रखो. मैं कोई निंदा करने वाला व्यक्ति नहीं हूं। हर चीज सुंदर है जैसी वह है। लेकिन तादात्म्य अशुद्धि निर्मित कर देता है।
जब तुम सोचने लगते हो कि तुम शरीर हो, तो तुमने हस्तक्षेप किया शरीर में और जब तुम हस्तक्षेप करते हो शरीर में, तो शरीर तुरंत प्रतिक्रिया करता है और अनुचित हस्तक्षेप करता है तुम में इस तरह अशुद्धि प्रवेश करती है।
पतंजलि कहते हैं, योग के विभिन्न अंगों के अभ्यास द्वारा अशुद्धि के क्षय होने से...।'
पड़े
एकरूपता के मिटने से, तादात्म्य के मिटने से, उस गड्डमड्ड अवस्था के मिटने से जिसमें कि तुम हुए हो—एक अराजकता, जहां हर चीज कुछ और ही चीज बन गई है। कोई चीज स्पष्ट नहीं है। कोई केंद्र अपने से गतिमान नहीं है। तुम एक भीड़ हो गए हो। हर चीज हस्तक्षेप कर रही है एकदूसरे के स्वभाव में। यही है अशुद्धता ।
1. अशुद्धि के क्षय होने से आत्मिक प्रकाश का आविर्भाव होता है।'