SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुत ज्यादा पानी वाष्पीभूत करते हैं। यह उनकी तरकीब है जिससे कि सूरज उनका पानी सोख न सके। पानी की इतनी कमी होती है। कैक्टस के पत्ते नहीं होते; केवल काटे होते हैं। और उनके अंतःकोष के भीतर गहरे में वे पानी इकट्ठा करते रहते हैं। महीनों तक भी अगर पानी न हो, तो वे जी लेंगे। वे वास्तव में पानी ही इकट्ठा करते हैं। उनके पास कोई अतिरिक्त चीज नहीं होती है-पत्ते नहीं, कुछ नहीं। और बिना काटो के कैक्टस की कोई जाति नहीं होती। यह आदमी बुरबांक पागल था। उसके मित्र सोचने लगे, 'वह पागल हो गया है।' उसका सारा परिवार तक सोचने लगा, 'अब यह तो बहुत हुआ : हर रोज कैक्टस के पास बैठा हुआ है और बातें कर रहा है। उनसे कह रहा है, तुम्हें भयभीत होने की जरूरत नहीं; मैं तुम्हारा मित्र हूं। तुम अपने काटे हटा सकते हो। कोई असुरक्षा नहीं है-तुम सुख-चैन से रह रहे हो मित्र के साथ, प्रेमी के साथ। तुम रेगिस्तान में नहीं हो। और कोई तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा।' सात वर्ष बहुत लंबा समय है; लेकिन घटना घटी। सात वर्ष बाद एक नई शाखा, बिना काटो वाली शाखा उगी कैक्टस में। यह पहला मानवीय संपर्क था वृक्षों के साथ। यह एक अदभुत घटना है-केवल बात करने से ही ऐसा हो गया। इसीलिए मैं बोले जाता हूं; तुम्हें आश्वस्त करता हूं कि तुम छलांग लगा सकते हो, भलीभांति जानते हुए कि सात वर्ष भी लग सकते हैं और सत्तर वर्ष भी! कौन जाने? तुम भी सोचने लग सकते हो मेरे बारे में : 'वह पागल हुआ है, रोज-रोज बातें किए जाता है, कोई सुनता नहीं। लेकिन अगर बुरबांक को सफलता मिल सकती है बीजों के साथ, कैक्टस के साथ, पेड़ों के साथ, तो मुझे क्यों नहीं? चौथा प्रश्न: आपने कहा कि आप 'लाओन्दव को' बोलते हैं और आप 'पतंजलि पर बोलते हैं। क्या यह आप पर निर्भर है या हम पर या फिर क्या बात है? यदि मैं अकेला होता, तम न होते, तो मैं कभी पतंजलि पर न बोलता; क्योंकि वह बात ही बिलकुल निरर्थक होती। यदि केवल तुम्हीं होते और मैं नहीं होता, तो मैं निरंतर बोलता पतंजलि पर; क्योंकि तब लाओत्सु पर बोलना संभव न होता। लेकिन क्योंकि तुम भी हो और मैं भी हूं तो यह बात आधी-आधी है। स्थिति यह है कि अगर तुम मुझे लाओत्सु पर सुनने के लिए राजी हो, तो मैं बोलूंगा
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy