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बुद्धत्व के अचानक घटित होने के लिए झेन साधकों को अपने गुरुओं के पास दस बीस या चालीस वर्षों तक क्यों रहना पड़ता है?
उनकी मूढताओं के कारण। तुम क्षण भर में बुद्धत्व को उपलब्ध हो सकते हो; और तुम प्रतीक्षा
कर सकते हो चालीस वर्षों तक। यह इस पर निर्भर करता है कि तुम कितनी मोटी बुद्धि के हो। तुम प्रतीक्षा कर सकते हो कई जन्मों तक, यह इस पर निर्भर करता है कि तुम अपने अज्ञान से कितना चिपके रहते हो। झेन गुरु जिम्मेवार नहीं है कि शिष्य को प्रतीक्षा करनी पड़ी चालीस वर्षों तक। शिष्य ही जिम्मेवार है। वह बहुत मंदबुद्धि व्यक्ति रहा होगा, जड़मति रहा होगा; उसकी बुद्धि में कोई चीज उतरती ही नहीं होगी। या बौद्धिक रूप से बहुत होशियार रहा होगा, इसलिए जो कुछ भी कहा जाए, वह उसके चारों ओर एक बौदधिक समझ निर्मित कर लेता होगा और उस बात को चूक जाता होगा, जो केवल हृदय से हृदय तक ही पहुंच सकती है। एक गहन आत्मीयता में, जहां कि हृदय से हृदय का मिलन होता है, समझ का फूल खिलता है।
तो वे लोग जिन्हें प्रतीक्षा करनी पड़ी चालीस वर्षों तक या तो बहुत मूढ़ रहे होंगे या बहुत ज्यादा ज्ञानी रहे होंगे। ये दोनों मूढ़ता के ही प्रकार हैं। वे या तो पंडित रहे होंगे या मढ़ रहे होंगे; दोनों समान ही हैं। पंडित ज्यादा चूकते हैं मूढों की अपेक्षा। कभी-कभी तो मूढ़ भी समझ सकता है, उसे समझ आ सकती है, क्योंकि वह सीधा-सरल होता है। उसका मन जटिल नहीं होता. यदि कोई बात उतरती है तो उतर ही जाती है। लेकिन ज्ञानी, पंडित, तार्किक, शास्त्रज्ञ, दार्शनिक-वहां इतनी जटिल पर्ते होती हैं कि उनमें उतरना करीब-करीब असंभव ही होता है। यदि तुम सहज-सरल हो तो बात घट सकती है बिलकुल अभी। यदि तुम सरल नहीं हो तो तुम्हें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी; और तब तुम्हें देखना होगा कि कौन सी जटिलता है जो समस्या बन रही है।
जो कुछ भी घटता है उसके तुम्ही जिम्मेवार हो। गुरु तो केवल एक मौजूदगी है। तुम उसके। सहभागी हो सकते हो। वह है सूर्य की भांति, एक आलोक. तुम आंखें खोल सकते हो और देख सकते हो। लेकिन यदि तुम आंखें न खोलो, तो प्रकाश तुम्हें विवश नहीं करेगा आंख खोलने के लिए। सूर्य भी ऐसा नहीं कर सकता। लेकिन सदा याद रहे, यदि तुम चूक रहे हो तो अपने ही कारण। या तो यह तुम्हारी होशियारी है या तुम्हारी मूढ़ता है। दोनों को छोड़ो। इसी तरह तो कोई शिष्य होता है-तुम्हारी मूढ़ता और तुम्हारा ज्ञान दोनों को छोड़ो। जब तुम दोनों को छोड़ देते हो, तो कोई बाधा नहीं रहती; तुम संवेदनशील होते हो, तुम खुले होते हो।
उस खुले होने में किसी भी क्षण बुदधत्व संभव है।