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________________ होना चाहिए; उसे छिप जाना चाहिए घने जंगलों में, जहां कोई नहीं जाता, क्योंकि यह कोई प्रदर्शन की चीज नहीं है। लेकिन अब यह प्रदर्शन की चीज हो गई है। और तुम देखोगे लोगों को काटो की शय्या पर लेटे हुए और तुम सजगता की जरा सी भी चमक नहीं पाओगे उनकी आंखों में या चेहरे पर, बल्कि तुम उन्हें बहुत जड़, असंवेदनशील पाओगे; बुद्धिहीन, मूढ़ पाओगे। चमत्कार है यह, क्योंकि विधि तो इसलिए थी कि सजगता निर्मित हो। क्या हुआ? वे बिलकुल भूल ही गए कि यह किसलिए है. यह स्वयं में लक्ष्य बन गई। उन्होंने तो एक तरकीब सीख ली है। और यदि तुम्हें इस तरह की तरकीबें सीखनी हैं, तो तुम्हें संवेदनहीन होना ही पड़ता है; केवल तभी तुम कीलों के या कीटों के बिस्तर पर लेट सकते हो। शरीर को संवेदनहीन होना चाहिए, ताकि वह ज्यादा कुछ महसूस ही न करे। उसे जड़ होना चाहिए, ताकि काटे या कीलें चुभे नहीं। तुम्हें एक सघन जड़ता, एक संवेदनहीनता निर्मित कर लेनी होगी अपने शरीर के चारों ओर। और लक्ष्य तो ठीक इसके विपरीत था. कि ज्यादा संवेदनशील होना है, कि शरीर को उसकी पूरी संवेदना में अनुभव करना है। यदि तुम कीलों या कांटो की शय्या पर लेटो तो तुम शरीर का पोर-पोर अनुभव करोगे। सारा शरीर पीड़ा में है। और पीड़ा तुम्हें झटका देती है, और पीड़ा तुम्हें जगाती है, तुम्हें सजग करती है। तो इसका अभ्यास नहीं करना है। यदि तुम इसका अभ्यास करते हो, तो धीरे- धीरे शरीर चालाकी सीख जाता है। तब शरीर बेजान हो जाता है; शरीर मुर्दा स्थान निर्मित करने लगता है, ताकि शरीर में जहां कहीं कील चुभे एक मृत बिंदु बन जाए। शरीर को अपना बचाव करना पड़ता है। तो तुम कीलों पर लेटे हुए आदमी को पाओगे एकदम बेहोश-तुम से ज्यादा बेहोश। यदि तुम लेटो ऐसी शय्या पर तो तुम पीड़ा से चीख पड़ोगे। तुम ज्यादा सजग हो; तुम ज्यादा संवेदनशील हो। वह तो आराम से लेट जाता है; वह तो सो भी जाता है उस पर। उसका शरीर ज्यादा पत्थर हो जाता है। जो असली बात है, सजगता, वह उसने खो दी है। अब ठीक उलटी बात हो गई है। और ऐसा ही होता है धर्म की सारी प्रक्रियाओं के साथ. वे क्रियाकांड बन जाती हैं। मेरा एक ऐसे व्यक्ति से मिलना हुआ जो दस वर्ष से खड़ा ही है। वह सोता नहीं, वह बैठता नहीं, वह बस खड़ा है। हठयोग की बहुत पुरानी विधियों में से यह एक विधि है चेतना निर्मित करने की। क्योंकि शरीर सोना चाहेगा। शरीर तो कहेगा, 'मैं सोना चाहता हूं।' कितनी देर खड़े रह सकते हो तुम? कुछ घंटों बाद या कुछ दिनों बाद, तुम नींद का जबरदस्त आवेग अनुभव करोगे। उस आवेग पर काबू पाने के लिए उसका अतिक्रमण करने के लिए और सजग बने रहने के लिए इस विधि का उपयोग है। तो मुझे यह व्यक्ति मिला प्रसिद्ध है वह, हजारों लोग आते हैं उसे नमस्कार करने। लेकिन वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं और किसके प्रति कर रहे हैं। वह आदमी पूरी तरह संवेदनशून्य हो चुका है। इतनी देर खड़ा रहा है वह कि उसके पांव करीब-करीब मुर्दा हो चुके हैं। वह उन्हें मोड़ नहीं सकता। वे ऐसे हो गए हैं जैसे कि हाथी-पांव के रोग में हो जाते हैं। पांव हाथी के पांव जैसे मोटे हो जाते हैं। उसके सारे शरीर का वजन पांवों में चला गया है। वह एक दुबला-पतला आदमी है। ऊपर
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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