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तुम फिर भूल जाओ। शुरू-शुरू में याद बनाए रखना बहुत कठिन है, लेकिन चौबीस घंटों में यदि तुम इसे एक क्षण को भी याद रख सको, तो वह उसके लिए पर्याप्त पोषण होगा। और धीरे – धीरे ज्यादा क्षण संभव हो पाएंगे। एक दिन आता है जब तुम इतने सहज रूप से याद रखते हो कि याद रखने की कोशिश करने की भी जरूरत नहीं रहती : यह बात श्वास की भांति स्वाभाविक हो जाती है जैसे तुम श्वास लेते हो उसी तरह तुम याद रखते हो। तब यह कहना भी ठीक नहीं है कि याद रखते हो, क्योंकि उसमें कोई प्रयास नहीं होता। यह बात सहज घटती है; यह सहज-स्फूर्त हो जाती है।
सत्य और असत्य के बीच भेद करने के सतत अभ्यास द्वारा......./
फिर आता है दूसरा चरण। पहला चरण है पृथकता, दृश्य और द्रष्टा के बीच के तादात्म्य को तोड़ना। फिर दूसरा चरण है :
सत्य और असत्य के बीच भेद करने के सतत अभ्यास दवारा अज्ञान का विसर्जन होता है।
पहला चरण हमने समझा; फिर आता है दूसरा चरण। वे दोनों एक साथ चलते हैं। ऐसा कहना ठीक नहीं कि यह दूसरा चरण दूसरा है-वे दोनों साथ-साथ ही चलते हैं। लेकिन बेहतर है कि शुरुआत हो द्रष्टा और दृश्य के भेद के साथ; तब दूसरी बात संभव होगी, क्योंकि दूसरी बात ज्यादा सूक्ष्म है-सत्य और असत्य के बीच भेद।
उदाहरण के लिए, सामान्य जीवन में तुम पूरी तरह भ्रमित हो चुके हो। तुम नहीं जानते कि सत्य क्या है और असत्य क्या है। तुम इतने डांवाडोल हो कि कोई भी भ्रांति तुम्हारे लिए सत्य मालूम हो सकती है; और जब वह सत्य हो जाती है-मतलब यह कि जब तुम उसे सत्य मान लेते हो तो वह तुम्हें प्रभावित करने लगती है। और जब वह तुम्हें प्रभावित करने लगती है, तो वह और ज्यादा सत्य मालूम पड़ती है, क्योंकि वह तुम्हें प्रभावित कर रही होती है। यह एक दुष्चक्र हो जाता है।
रात को तुम स्वप्न देखते हो कि कोई तुम्हारी छाती पर चढ़ा बैठा है छुरा लिए और बस तुम्हें मार डालने को ही है-एक दुखस्वप्न। तुम चीख पड़ते हो। उस चीखने के कारण नींद टूट जाती है। तुम आंखें खोलते हो, वहा कोई नहीं बैठा है तुम्हारी छाती पर। शायद नींद में तुमने अपना ही तकिया रख लिया था अपनी छाती पर, या शायद तुम्हारे अपने ही हाथ थे, और उस दबाव ने असर दिखाया, उस दबाव ने निर्मित कर दिया वह स्वप्न।