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मैं सदा ही तुम्हारे चारों ओर एक सूक्ष्म दीवार देखता हूं। जब तुम मेरे पास आते हो, तो मैं देखता हूं कि मैं तुम तक पहुंच सकता हूं या नहीं, तुम तक पहुंचना संभव है या नहीं। यदि मैं ज्ञान की बहुत मोटी दीवार देखता हूं तो नितांत असंभव लगता है तुम तक पहुंचना मुझे प्रतीक्षा करनी होती है। यदि मुझे छोटी सी संघ भी मिले तो मैं वहां से प्रवेश कर जाता हूं। लेकिन भयभीत लोग भय से भरे हु लोग वे संघ तक नहीं छोड़ते; वे पक्की दीवार बना लेते हैं वे अपने चारों ओर एक घेरा बना लेते हैं
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ज्ञान का, जानने का धारणाओं का अर्थहीन शब्दों का व्यर्थ मात्र शोरगुल वस्तुतः एक उपद्रव, लेकिन तुम विश्वास करते हो उनमें।
तो यह पहली बात समझ लेने की है : ज्ञान कोई ज्ञान नहीं है। और केवल वह ज्ञान जो कि ज्ञान नहीं बल्कि प्रज्ञा है, समझ है, बोध है, वही कांट सकता है अज्ञान की जड़ों को।
याद रखना इस शब्द 'बोध' को । जैसे सुबह धीरे- धीरे तुम जागते हो और नींद के बाहर आते हो और नींद समाप्त हो जाती है, मिट जाती है वैसा ही फिर घटता है तुम नींद से बाहर आते हो; धीरेधीरे तुम्हारी आंखें खुलती हैं, तुम देखने लगते हो; तुम्हारा हृदय आंदोलित होता है, तुम्हारा अंतस खुलने लगता है, और तत्क्षण तुम वही व्यक्ति नहीं रह जाते जो तुम सोए थे। हु
क्या तुमने कभी गौर किया, सुबह जब तुम जागते हो, तो तुम बिलकुल ही दूसरे व्यक्ति होते हो, तुम बिलकुल अलग ही आदमी हो
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वही नहीं होते जो सोया हुआ था? क्या तुमने ध्यान दिया, नींद में तुम हो नींद में तुम ऐसे काम करते हो, जिनकी तुम जागे हुए करने की कल्पना भी नहीं कर सकते ! नींद में तुम ऐसी बातों पर विश्वास कर लेते हो, जिन पर जागे हुए तुम विश्वास कर ही नहीं सकते। नींद में तो हर तरह की बेतुकी बातों पर विश्वास आ जाता है। जागने पर तुम हंसते हो अपनी मूढ़ता पर अपने ही सपनों पर ।
ऐसा ही तब घटता है, जब तुम अंतिम रूप से जाग जाते हो। तब संसार की वे सब बातें जिन्हें तुम उस क्षण तक जी रहे थे, एक सपने का एक लंबे सपने का हिस्सा बन जाती हैं। इसीलिए हिंदू सदा कहते रहे हैं, संसार माया है. वह सपनों से बना है; वह वास्तविक नहीं है। जागो और तुम पाओगे कि वे सब मिथ्या आभास जो तुम्हें घेरे हुए थे, खो गए हैं। और अस्तित्व का एक नितांत अलग आयाम उपलब्ध होता है- वही है मुक्ति मुक्ति का अर्थ है भ्रमों से मुक्ति मुक्ति का अर्थ है निद्रा से मुक्ति मुक्ति का अर्थ है उस सब से मुक्ति जो कि नहीं है और भासता है कि है।
सत्य को जानने का अर्थ है घर आ जाना, असत्य में उलझे रहने का अर्थ है संसार में रहना । अब हम पतंजलि के सूत्रों को समझने का प्रयास करें।