________________ वरना वह फिर लौट कर आएगा। तो बात खतम होने दो और पूरी होने दो। वे परम बोध की बात कह रहे हैं, लेकिन वे नासमझ लगते हैं, पागल लगते हैं। हां, मैं तुम्हें पागल बना रहा हूं। मैं पागल हूं-इतना पक्का है। लेकिन प्रश्न का दूसरा हिस्सा पक्का नहीं है। तुम अभी भी अपनी तथाकथित समझदारी को पकड़ रहे हो, लेकिन मैं जो भी प्रयास संभव है, करता ही रहूंगा। और यदि तुम मेरे पास बने रहते हो, तो किसी न किसी दिन तुम पागल हो जाओगे। तुम्हें पागलपन के लिए राजी होना ही होगा, यही धर्म का कुल सार है। इस तथाकथित बुद्धिमान संसार में पागल होना एकमात्र उपाय है समझदार होने का, क्योंकि संसार विक्षिप्त है। ग्यारहवां प्रश्न : महावीर, बुध और रजनीश शारीरिक रूप से क्यों नहीं गाते और नाचते? वहर पल इसी में संलग्न हैं, लेकिन उसे देखने के लिए गहरी आंखें चाहिए। तुम कभी असली प्रश्न नहीं पूछते। लोग पूछते रहते हैं, 'परमात्मा कहां छिपा है?' वे कभी नहीं पूछते कि उनकी आंखें खुली हैं या नहीं। वे पूछते हैं, 'कहां खोजूं मैं उसको?' वे कभी नहीं पूछते, 'मैं कैसे परमात्मा के लिए खुला होऊं, ताकि वह मुझे खोज ले?' तुम पूछते हो, 'महावीर, बुद्ध और रजनीश क्यों नृत्य नहीं करते?' वे तो हर समय नृत्य कर रहे हैं। उनका पूरा जीवन ही एक नृत्य है, लेकिन उसे देखने के लिए कोई और आंखें चाहिए। तुम्हारे पास ठीक आंखें नहीं हैं। ठीक आंखें पैदा करो। अंतिम प्रश्न : क्या आप अपने पुराने आश्वासन को कुछ इस भांति परिवर्तित करना चाहेंगे : 'मैं यहां सिखाने के लिए नहीं आया हूं बल्कि तुम्हें हंसाने के लिए आया हूं। हंसो और समर्पण घटित होगा- और किसी आश्वासन की अब कोई जरूरत नहीं है।'