________________ रहता है तुम्हें; जहां भी तुम देखते हो, गहराई और गहराई खुलती जाती है रहस्य की। ऐसा नहीं है कि तुम्हारे पास कोई उत्तर होता है! नहीं, तुम्हारे पास प्रश्न ही नहीं होता-बस इतना ही। जब तुम्हारे भीतर कोई प्रश्न नहीं होता, तब सारा जीवन उपलब्ध होता है अपने पूरे रहस्य सहित-और वही उत्तर है। तो मत पूछो कि कैसे कोई झूठी समस्याओं को झूठ की तरह पहचानना सीख सकता है। कैसे तुम पहचान सकते हो झूठी समस्याओं को? तुम ही झूठ हो, तुम अभी हो ही नहीं। तुम्हारी गैर-मौजूदगी में सब समस्याएं खड़ी होती हैं। जब तुम मौजूद हो जाते हो, वे तिरोहित हो जाती हैं। सजगता में कोई समस्या नहीं होती, कोई प्रश्न नहीं होते। असजगता में प्रश्न होते हैं और समस्गा! होती हैं और अनंत प्रश्न, अनंत समस्याएं होती हैं। कोई नहीं सुलझा सकता उन्हें। यदि मैं गले उत्तर भी दूर तो तुम उस उत्तर में से और-और प्रश्न बना लोगे। वह कोई उत्तर न होगा, केवल और प्रश्नों के लिए बहाना बन जाएगा। भीतर चलती बातचीत को बंद करो, और फिर देखो। झेन में वे कहते है कि कोई भी चीज छिपी नहीं है, हर चीज पहले से ही स्पष्ट है, लेकिन तम्हारी आंखें ही बंद है। हुई दसवां प्रश्न : आप पागल हैं और आप मुझे भी पागल बनाए दे रहे हैं। तम्हारी बात का पहला हिस्सा बिलकुल सच है, मैं पागल हूं लेकिन दूसरा हिस्सा अभी सच नहीं है। मैं तुम्हें पागल बना तो रहा हूं लेकिन तुम बन नहीं रहे हो, क्योंकि तुम बहुत बुद्धिमान हो-यही तुम्हारी तकलीफ है। थोड़ा और पागलपन-और बात बिलकुल बदल जाएगी। तुम बहुत ज्यादा जड़ हो गए हो अपनी तथाकथित बुद्धिमानी में। तुम्हें बाहर आना है इससे। समझो इसे, जीसस लोगों को पागल मालूम पड़ते थे जब वे जीवित थे। बुद्ध पागल मालूम पड़ते थे। वे इस अर्थों में पागल मालूम पड़ते थे कि उन्होंने समाज की समझदारी को इनकार कर दिया। यह पागलपन ही तो है कि राज्य छोड़ कर भाग जाना-हर कोई दौड़ रहा है महल की तरफ और बुद्ध सब छोड़ कर भाग रहे हैं! पागल हैं। और उन्होंने बहत लोगों को पागल बनाया।