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पाप और योग. एक ही पाप है-अलग हो जाना, और योग का अर्थ है- फिर से मिल जाना। यदि तुम्हारा फिर से मिलन हो जाए समय के साथ, तो कहीं कोई दुख नहीं रहता। जितना ज्यादा का समय से दूर चले जाते हो, उतना ज्यादा तुम दुख भोगते हो। जितना ज्यादा तुम्हारा अहंकार सघन होता है, उतने ज्यादा तुम दुखी होते हो।
चौथा प्रश्न :
कभी- कभी ऐसा लगता है जैसे कि आप एक स्वप्न हैं.........
यह सच है। अब तुम्हें और गहरा करना है इस अनुभूति को, ताकि कभी तुम अनुभव कर सको कि
तुम भी एक स्वप्न हो और गहरे उतरो इस अनुभूति में एक घड़ी आती है जब तुम जान लेते हो कि जो भी है, सब सपना ही है। जब तुम यह जान लेते हो कि जो भी है सब सपना है, तो तुम मुक्त हो जाते हो।
यही तो अर्थ है हिंदुओं की माया की धारणा का वह यह नहीं कहती कि सब कुछ झूठ है वह इतना ही कहती है कि सब कुछ सपना है। सवाल सच या झूठ का नहीं है। तुम क्या कहोगे सपने को वह सच है या झूठ? यदि वह झूठ है, तो कैसे दिखाई पड़ता है वह ? यदि वह सच है, तो कैसे मिट जाता है वह इतनी आसानी से? तुम अपनी आंखें खोलते हो और वह कहीं नहीं होता । सपना जरूर कहीं सच और झूठ के बीच होगा। उसमें जरूर कुछ न कुछ अंश होगा सच्चाई का और उसमें जरूर कुछ न कुछ अंश होगा झूठ का सपना भी होता तो है, सपना एक सेतु है-न वह इस किनारे पर है और न उस किनारे पर है; न इधर है, न उधर है।
यदि
तुम सपने को सच मान लेते हो, तो तुम सांसारिक हो जाओगे। यदि तुम सपने को झूठ मान लेते हो तो तुम बच कर भागने लगोगे हिमालय की ओर तुम असांसारिक हो जाओगे और दोनों ही दृष्टिकोण अतियां हैं। सपना ठीक मध्य में है. वह सच और झूठ दोनों है उससे भागने की कोई जरूरत नहीं है - वह एक झूठ है उसे पकड़ने की भी कोई जरूरत नहीं है- वह एक झूठ है। सपनों के पीछे जिंदगी गंवाने की कोई जरूरत नहीं है - वे झूठ हैं। और उन्हें त्याग देने की भी कोई जरूरत नहीं है- क्योंकि कैसे तुम झूठ का त्याग कर सकते हो? उनका उतना भी अर्थ नहीं है।
और इसी समझ से संन्यास की मेरी धारणा का जन्म होता है. तुम सपने को यह जानते हु जीते हो कि वह एक सपना है तुम संसार में यह जानते हुए जीते हो कि वह एक सपना है। तब तुम संसार