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प्रवचन 60 - जीवन : अस्तित्व की एक लीला
प्रश्न-सार:
1-आपने कहा, मनुष्य एक सेतु है-पशु और परमात्मा के बीच। तो हम इस सेतु पर कहां हैं?
2-कभी आप कहते हैं कि गुरु और शिष्य का, प्रेम और प्रेयसी का अंतर्मिलन संभव है। कभी आप कहते हैं कि हम नितांत अकेले है और कोई मिलन संभव नहीं है। कृपया इस विरोधाभाष को समझाये।
3-यदि जीवन अस्तित्व की एक आनंदपूर्ण लीला है,
तो फिर सभी जीव दुख क्यों भोग रहे हैं?
4-कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे कि आप एक स्वप्न हैं...!
5-ऐसा कैसे है कि मैं अभी भी भटका हुआ हूं....?
6-मैं खोई हुई अवस्था में हूं-न इस संसार में हूं, न उस संसार में; न तो पशु हूं और न परमात्मा। इस अवस्था से बाहर कैसे निकल?
7-यदि विधायक है नकारात्मक के कारण, प्रकाश है अंधकार के कारण; तो कोई मालिक कैसे हो सकता है? बिना किसी को गुलाम बनाए?
8-क्या आपके पास बने रहने कि, आपसे दूर न होने की आकांशा भी एक बंधन है?
9-कैसे कोई झूठी समस्याओं को झूठ की तरह पहचानना सीख सकता है?
10-आप पागल है। और आप मुझे भी पागल बनाए दे रहे है?
11-महावीर, बुद्ध और रजनीश शारीरिक रूप से क्यों नहीं नाचते और गाते?