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लेकिन वे कुछ नहीं सोच सके। तो जब उनका अगला जन्मदिन आया तो मैंने एक नई साइकिल खरीदी। जो अच्छी से अच्छी साइकिल उपलब्ध थी, वह खरीदी और उन्हें भेंट में दी। वे बहुत खुश हए। अगले दिन मैं प्रतीक्षा कर रहा था कि वे नई साइकिल पर आएंगे, लेकिन वे पुरानी साइकिल पर ही चले आ रहे थे! तो मैंने पूछा, 'बात क्या है?' उन्होंने कहा, 'जो साइकिल आपने मुझे दी है वह इतनी सुंदर है कि मैं उसे इस्तेमाल नहीं कर सकता।'
वह पूजा की चीज हो गई। वे रोज उसे साफ करते, मैं देखता कि वे साफ कर रहे हैं उसे। वे उसको साफ करते और उसको चमकाते और यही सब करते रहते और हमेशा वह साइकिल उनके घर में किसी सजावट की वस्तु की भांति रखी रहती, और वे अपनी पुरानी साइकिल पर सवार भागते रहतेचार-पांच मील कालेज जाते; चार-पांच मील बाजार जाते-सारा दिन वही पुरानी साइकिल। असंभव था उन्हें नई साइकिल का उपयोग करने के लिए राजी करना। वे कहते, 'आज बारिश हो रही है'; 'आज बहत गरमी है'; और 'मैंने अभी साफ किया है उसे। और आप तो जानते हैं कि विदयार्थी कैसे हैं-महा शरारती हैं-कोई खरोंच ही लगा दे। मुझे कालेज के बाहर खड़ी करनी पडेगी, और कोई खरोंच मार सकता है और खराब कर सकता है।'
उन्होंने कभी उसे इस्तेमाल नहीं किया, और जहां तक मैं जानता हं वे अभी भी पूजा ही कर रहे होंगे उसकी। ऐसे लोग हैं जो वस्तुओं की पूजा कर रहे हैं। मैंने उन प्रोफेसर से कहा, 'आप साइकिल के मालिक नहीं हैं, साइकिल मालिक हो गई है आपकी। असल में मैं सोच रहा था कि मैंने आपको साइकिल भेंट दी-अब मैं साइकिल से कह सकता हूं कि मैंने तुम्हें यह प्रोफेसर भेंट में दिया। साइकिल मालिक हो गई है।'
यदि तुम इच्छा करते हो चीजों की, तो तुम मालिक नहीं हो। और यही भेद है : तुम महल में हो सकते हो, लेकिन यदि तुम उसका उपयोग करते हो, तो कुछ फर्क नहीं पड़ता। तम झोपड़ी में हो सकते हो, लेकिन यदि तुम उसका उपयोग नहीं करते और झोपड़ी तुम्हारा उपयोग करती है, तो तुम बाहर से अपरिग्रही लग सकते हो लोगों को, लेकिन तुम हो नहीं : तुम परिग्रही हो। एक आदमी महल में रह सकता है और संत हो सकता है; और एक आदमी झोपड़ी में रह सकता है और शायद संत न हो। संत होने की गुणवत्ता तुम्हारे मालिक होने पर निर्भर है। यदि तुम उपयोग करते हो चीजों का, तो ठीक है; लेकिन यदि तुम्हारा उपयोग किया जा रहा है, तो तुम बड़ा मूढतापूर्ण व्यवहार कर रहे हो। पतंजलि कहते हैं, 'फिर समस्त इंद्रियों पर पूर्ण वश हो जाता है।'
और इंद्रियों के विषयों पर भी... केवल प्रत्याहार द्वारा! जब तुम्हारी जिंदगी में आत्म-ज्ञान सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाता है और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं रहता, जब तुम्हारे अपने आत्म-शान के लिए, तुम्हारी अंतस–सत्ता के लिए हर छोड़ी जा सकती है, जब राज्य मूल्यहीन हो जाते हैं यदि तुम्हें