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और वृक्ष बिलकुल भिन्न होता है उस खोल से उसका कुछ लेना-देना नहीं उससे खोल केवल एक सुरक्षा है, एक आवरण है लेकिन आवरण बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
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तुम्हारा अहंकार बिलकुल खोल की भांति है। यदि अहंकार मरता है, तो तुम विकसित होओगे - तुम परमात्मा हो जाओगे। अहंकार के साथ तुम पीड़ित और दुखी रहोगे बिना अहंकार के तुम परम आनंदित होओगे। लेकिन तुम इसे जानते नहीं; खोल ने कभी कुछ सुना नहीं इस विषय में। और तुम मुझे सुनते रहते हो खोल के कवच के भीतर से ही इसीलिए तुम मुझसे कहते रहते हो, 'हमें दे कुछ दें मरने के लिए लेकिन तुम ऐसा चाहते नहीं ।
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मैं मरने की ही व्यवस्था दे रहा हूं प्रतिपल । असल में मैं और कुछ भी नहीं दे रहा हूं। धर्म का संपूर्ण विज्ञान मृत्यु का विज्ञान है। वह तुम्हें सिखाता है कि कैसे पूरी तरह मरा जाए, ताकि कुछ भी बाकी न बचे। पूरा खोल धरती में मिट जाए, घुल जाए, और वृक्ष पैदा हो जाए।
लेकिन क्या तुम सोचते हो कि कोई और तुम्हारे लिए यह करेगा? वह संभव नहीं। तुम्हें आत्महत्या करनी है कोई और तुम्हारी हत्या नहीं कर सकता है इसे याद रखना यह शब्द 'आत्महत्या' बहुत सुंदर है। मैं शरीर की हत्या की बात नहीं कर रहा हूं मैं मन की हत्या की बात कर रहा हूं-अहंकार की हत्या की बात कर रहा
अमन हो जाओ, निरहंकार हो जाओ, और सारा अस्तित्व उपलब्ध हो जाता है। तुम इसे लाखों जन्मों से अपने भीतर लिए चल रहे हो। वह तुम्हारे भीतर मौजूद ही है। बीज वहां मौजूद ही है, बस ठीक जमीन मिल जाए और खोल टूटने लगती है... और फिर वृक्ष प्रकट होता है अपनी पूरी महिमा और अपने पूरे सौंदर्य के साथ।
अंतिम प्रश्न:
आपके वचन कहां से आते हैं और आपका उनके साथ क्या संबंध है?
को भीतर नहीं है जो उनके साथ संबंध बनाए। वे शून्य से प्रकट होते हैं। कोई भीतर व्यवस्था
नहीं कर रहा है। मैं भीतर नहीं हूं उनकी व्यवस्था बिठाने के लिए तुम प्रश्न पूछते हो और शून्य से उत्तर आता है। वे शब्द मेरे नहीं हैं। प्रश्न तुम्हारा है; उत्तर मेरा नहीं है। प्रश्न तुम्हारे मन से आता है;