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होती। विचार और श्वास भौतिक संसार का हिस्सा हैं। निर्विचार, निःश्वास-वे शाश्वत जीवन का हिस्सा हैं।
प्राणायाम का चौथा प्रकार आंतरिक होता है और वह प्रथम तीन के पार जाता है।
पतंजलि कहते हैं. ये प्राणायाम के तीन प्रकार हैं- भीतर रोकना, बाहर रोकना, अचानक रोकना। और चौथा प्रकार है-जो आंतरिक है।
इस चौथे प्रकार पर बुद्ध ने बहुत जोर दिया है, वे इसे कहते हैं, 'अनापानसतीयोग'। वे कहते हैं, 'कहीं भी श्वास को रोकने की कोशिश मत करना। बस श्वास की पूरी प्रक्रिया को देखते रहना।' श्वास भीतर जाती है-तुम देखना, एक भी श्वास चूकना मत। श्वास भीतर जाती है-तुम देखते रहना। फिर एक ठहराव आता है-जब श्वास भीतर जा चुकी होती है तो एक पल के लिए ठहरती है-उस ठहराव को देखना। कुछ करना मत; बस देखते रहना। फिर श्वास चल देती है बाहर की यात्रा पर-देखते रहना। जब श्वास पूरी तरह बाहर होती है तो फिर एक क्षण के लिए ठहरती है-उसको भी देखना। फिर श्वास भीतर आती है, बाहर जाती है, भीतर आती है, बाहर जाती है-तुम बस देखना। यह चौथा प्रकार है. केवल देखते रहने से ही तुम श्वास से अलग हो जाते हो।
जब तुम श्वास से अलग हो जाते हो, तब तुम विचारों से अलग हो जाते हो। असल में शरीर में श्वास की प्रक्रिया मन में विचारों की प्रक्रिया के समानांतर ही है। विचार चलते हैं मन में; श्वास चलती है शरीर में। वे समानांतर शक्तियां हैं, एक ही सिक्के के दो पहल हैं। पतंजलि भी इसकी ओर संकेत करते हैं, यद्यपि उन्होंने जोर नहीं दिया है चौथे प्राणायाम पर। वे केवल संकेत करते हैं इसकी ओर, लेकिन बुद्ध ने तो अपना पूरा ध्यान चौथे प्राणायाम पर ही केंद्रित कर दिया। वे प्रथम तीन की बात ही नहीं करते। संपूर्ण बौद्ध ध्यान चौथे प्राणायाम पर ही आधारित है।
'प्राणायाम का चौथा प्रकार'-जो कि साक्षी होना है-'आंतरिक होता है और वह प्रथम तीन के पार जाता है।
लेकिन पतंजलि बहत वैज्ञानिक हैं। वे चौथे प्राणायाम का कभी उपयोग नहीं करते, फिर भी वे कहते हैं कि वह तीनों के पार है। हो सकता है कि पतंजलि के पास उतने विकसित शिष्यों का समूह न रहा हो, जैसा बुद्ध के पास था। पतंजलि जरूर उन लोगों पर काम कर रहे होंगे जो शरीर के साथ ज्यादा जुड़े थे, और बुद्ध उन लोगों पर काम कर रहे थे जो मन के साथ ज्यादा जुड़े थे। पतंजलि कहते हैं कि चौथा प्राणायाम बाकी तीनों के पार है, लेकिन वे स्वयं कभी उसका उपयोग नहीं करते।