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बना देता हूं। मैं चोट करता रहता हूं तुम्हें तोड़ता रहता हूं। मुझे तुम्हारा सारा ढांचा तोड़ना है। मुझे तुम्हें तोड़ना है; केवल तभी तुम पुनर्निर्मित हो सकते हो। और कोई उपाय नहीं है। मुझे तुम्हें पूरी तरह मिटा देना है, केवल तभी नया सृजन संभव है।
तो मैं मिटाए जाता हूं; फिर तुम्हें थोड़ी समझ आती है-समझ की झलकें मिलती हैं। उन झलकों में तुम देखोगे कि तुम श्रद्धा भी नहीं करते; संदेह वहा छिपा हुआ है। पहले तुम संदेह करते हो। दूसरी सीढ़ी पर तुम गहरे छिपे संदेह सहित श्रद्धा करते हो। तीसरी सीढ़ी पर तुम सजग हो जाते हो भीतर छिपे हुए संदेह और ऊपर-ऊपर की श्रद्धा के प्रति - और तुम एक साथ श्रद्धा और संदेह कैसे कर सकते हो? तो तुम झिझकते हो, तुम भ्रम में पड़ जाते हो।
इस जगह से दो संभावनाएं खुलती हैं : या तो तुम संदेह को पकड़ लेते हो, वह पहली अवस्था है - जैसे तुम मेरे पास आए थे; या फिर तुम में श्रद्धा विकसित होती है और तुम सारे संदेह गिरा देते हो। यह एक बहुत ही तरल अवस्था होती है। यह दो ढंग से विकसित हो सकती है. या तो तुम नीचे उतर जाते हो जहां तुम फिर से संदेहों से भर जाते हों झूठी श्रद्धा भी मिट चुकी होती है; या तुम में श्रद्धा का विकास होता है और श्रद्धा एक सुदृढ़ आधार बन जाती है, संदेह का दमित हिस्सा खो जाता है। तो यह अवस्था बहुत नाजुक होती है और व्यक्ति को बहुत सावधानी और सजगता से बढ़ना होता है।
'अब मुझे बताएं कि मैं क्या करूं? कहा जाऊं?
एक बार तुम मेरे पास आ गए तो अब कहीं कोई जगह नहीं है जाने के लिए। वैसे तुम कहीं भी जा सकते हो, लेकिन तुम्हें वापस आना पड़ेगा। मेरे पास आना खतरनाक है : फिर तुम कहीं भी जा सक हो, लेकिन सब जगह मैं तुम्हें घेरे रहूंगा। तो कोई जगह नहीं है जाने के लिए।
और कुछ नहीं है करने के लिए। बस, सजग रहो सारी स्थिति के प्रति। क्योंकि यदि तुम कुछ करने लगे, यदि तुम कुछ करने के लिए आतुर होने लगे, तो तुम सब कुछ गड़बड़ कर दोगे जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दो। उलझाव है, पागलपन है, श्रद्धा जा चुकी है केवल प्रतीक्षा करना और देखना और बैठे रहना किनारे पर और नदी को थिर होने देना अपने आप। वह थिर होती है अपने से ही; तुम्हें कुछ करने की जरूरत नहीं है।
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बहुत कर लिया तुमने अब विश्राम करो। बस प्रतीक्षा करो और देखो कि कैसे नदी थिर होती है। वह साफ नहीं है; कीचड़ है उसमें और सूखे पत्ते तैर रहे हैं सतह पर कूद मत पड़ना उसमें। तुम आतुर हो रहे हो उसमें कूद पड़ने के लिए कुछ करने के लिए, ताकि पानी साफ हो सके जो कुछ भी तुम करोगे, तुम और ज्यादा कीचड़ मचा दोगे। कृपा करके इस प्रलोभन को रोकना । किनारे पर ही रुकना, नदी में मत उतरना, और बस देखते रहना।