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फिर यह बात तुम्हारे मन के पर्दे पर किसी चित्र की भांति नहीं रहती। नहीं, वहां कोई चित्र नहीं होता। एक विराट शून्यता होती है और उस विराट शून्यता में तुम खो रहे होते हो। न केवल परमात्मा की परिभाषा खो जाती है, सीमाएं खो जाती हैं; जब तुम असीम के संपर्क में आते हो, तो तुम भी अपनी सीमाएं खोने लगते हो। तुम्हारी सीमाएं भी धुंधली- धुंधली हो जाती हैं। तुम्हारी सीमाएं खोने लगती हैं, ज्यादा लोचपूर्ण हो जाती हैं; तुम आकाश में धुएं की भाति विलीन होने लगते हो। एक घड़ी आती है, तुम देखते हो स्वयं को और तुम वहां नहीं होते।
तो पतंजलि दो बातें कहते हैं : अप्रयास और चैतन्य का असीम पर केंद्रित होना। इस भांति तम आसन सिद्ध करते हो। और यह केवल शुरुआत है, यह केवल शरीर है। व्यक्ति को और गहरे उतरना होता है।
ततो द्वन्द्वानभिघात:।
जब आसन सिदध हो जाता है तब दवंदवों से उत्पन्न अशांति की समाप्ति होती है।
जब शरीर सच में ही सख में होता है, विश्रांत होता है, शरीर की लौ कैप नहीं रही होती स्थिर होती है, कोई गति नहीं होती-अचानक जैसे समय रुक गया हो, कोई हवा न चल रही हो; प्रत्येक चीज थिर और शांत हो और शरीर में कोई उत्पेरणा न हो हिलने -इलने की, वह थिर हो, गहनरूप से संतुलित, शांत, मौन, अपने स्वभाव में स्थित. उस अवस्था में सभी दवंदव समाप्त हो जाते हैं और दवंदवों के कारण उत्पन्न अशांति समाप्त हो जाती है।
क्या तुमने ध्यान दिया कि जब भी तुम्हारा मन अशांत होता है तो तुम्हारा शरीर भी अशांत और बेचैन होता है, तम चुपचाप नहीं बैठ सकते? या जब भी तम्हारा शरीर बेचैन होता है तो तम्हारा मन मौन नहीं हो सकता? वे दोनों जड़े हैं। पतंजलि अच्छी तरह से जानते हैं कि शरीर और मन दो चीजें नहीं हैं, तुम शरीर और मन, दो में बंटे हुए नहीं हो। शरीर और मन एक ही चीज है। तुम साइकोसोमैटिक हो; तुम मनोशरीर हो। शरीर केवल प्रारंभ है तुम्हारे मन का और मन तुम्हारे शरीर के अंतिम छोर के सिवाय और कुछ भी नहीं है। दोनों एक ही घटना के दो पहलू हैं; वे दो नहीं हैं। तो जो कुछ भी शरीर में घटता है वह मन को प्रभावित करता है और जो कुछ भी मन में घटता है वह शरीर को प्रभावित करता है। वे साथ-साथ चलते हैं।
इसलिए शरीर पर इतना जोर है, क्योंकि अगर तुम्हारा शरीर विश्राम में नहीं है, तो तुम्हारा मन भी शांत नहीं हो सकता। और शरीर के साथ शुरू करना ज्यादा आसान होता है, क्योंकि वह सब से बाहरी पर्त है। मन के साथ शुरू करना कठिन होता है। बहुत से लोग मन के साथ प्रारंभ करने का प्रयास