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जरा सोचो, जर्मनी आलसी व्यक्तियों से, सुस्त व्यक्तियों से भरा होता तो क्या करता हिटलर? तुम उनको दाएं मुड़ने के लिए कहते, और वे खड़े हैं। तुम उनसे घूम जाने के लिए कहते, और वे खड़े हैं। असल में तब तक तो वे बैठ चुके होते और सो गए होते।
एडोल्फ हिटलर बिलकुल मूढ़ मालूम पड़ेगा तामसिक लोगों के बीच। और वह बिलकुल विक्षिप्त मालूम पड़ेगा सात्विक समाज में बिलकुल पागल लगेगा। सात्विक समाज में लोग पकड़ लेंगे उसे और चिकित्सा करेंगे उसकी। तामसिक समाज में वह एकदम मूड मालूम पड़ेगा, नासमझ। लोग आराम कर रहे हैं और तुम नाहक घूम रहे हो झंडे लेकर नारे लगाते हुए और कोई तुम्हारा अनुयायी नहीं; अकेले हो! लेकिन जर्मनी में वह नेता बन गया, 'फ्यूहरर', जर्मनी का सब से महान नेता, क्योंकि लोग रजोगुणी थे।
स्वभाव रजोगणी प्रकृति का था, क्षत्रिय वृत्ति का, लड़ने को तैयार, क्रोधित होने को सदा ही तैयार; अब थोडा शांत हआ है। वह दौड़ रहा था एक सौ मील प्रति घंटा की रफ्तार से, और मैं उसे ले आया हं दस मील प्रति घंटा तक। निश्चित ही वह सस्त अनुभव करता है। यह आलस्य नहीं है, यह सक्रियता की विक्षिप्तता को सामान्य अवस्था तक ले आना है, क्योंकि केवल वहीं से संभव हो पाएगा सत्व; अन्यथा वह संभव नहीं हो पाएगा। तुम्हें संतुलन पाना होगा रजोगुण और तमोगुण के बीच, आलस्य और गति के बीच। तुम्हें जानना होगा कि आराम कैसे करना है और तुम्हें जानना होगा कि सक्रिय कैसे होना है
केवल विश्राम करना सदा आसान है, और केवल सक्रिय होना भी आसान है। लेकिन इन दोनों विपरीत ध्रुवों को जानना और उनके बीच संतुलन करना और एक लय निर्मित करना बहुत कठिन है-और वह लय ही सत्व है।
'आपने मुझे पूरी तरह भ्रमित और सुस्त बना दिया है।'
सच है।
'मैं पागल जैसा हो गया हूं।'
बिलकुल सच है। तुम सदा से हो। अब तुम जानते हो इसे-और यह उस आदमी का लक्षण है जो पागल नहीं है। एक पागल आदमी कभी नहीं जान सकता कि वह पागल है। जाओ पागलखाने; जरा पूछो वहां। कोई पागल नहीं कहता, 'मैं पागल हूं।' प्रत्येक पागल मानता है कि सिवाय उसके सारा संसार पागल है-यही है परिभाषा पागलपन की। तुम्हें ऐसा कोई पागल नहीं मिल सकता जो कहे, 'मैं पागल हूं।' यदि उसके पास इतनी बुद्धि हो कहने की कि वह पागल है, तो फिर वह बुद्धिमान ही हुआ, फिर वह पागल न हुआ। पागल व्यक्ति कभी स्वीकार नहीं करता। पागल व्यक्ति बहुत ही