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पहली तो बात : विजय आनंद इतना मूठ नहीं कि मुझ से ऐसे प्रश्न पूछे। वह कभी अपने काम
के बारे में कोई बात नहीं करता। उसने फिल्म 'जान हाजिर है' के बारे में कभी कुछ पूछा नहीं और मैंने कभी कुछ कहा नहीं। मैं तो यह भी नहीं जानता कि उसने 'जान हाजिर है' नाम की कोई फिल्म बनाई है! लेकिन इन लोगों ने, स्टारडस्ट के संपादक - मंडल ने जरूर कोई सपना देखा है। उन्होंने सपना देखा है, और अपने सपने में ही उन्होंने शायद मुझे यह कहते हुए सुना है, "विजय, तुम्हा फिल्म बहुत सफल होगी। फिर भी उन्होंने मेरी बात को गलत समझा। मैंने उनके सपने में उस फिल्म के बहुत सफल होने की बात लाओत्सु की भाषा में कही होगी।
लाओत्सु कहता है, 'क्योंकि बहुत थोड़े से लोग मुझे समझते हैं, इसलिए मैं सफल हूं।'
तो यदि इस ढंग से समझो तो परम सफलता का अर्थ है कि कोई देखने नहीं जाता फिल्म | क्योंकि भीड़ इतनी मूढ़ है कि वह समझ ही नहीं सकती उसे यह सम्मानजनक है, यह परम सफलता है। जब भीड़ जाती है किसी फिल्म को देखने, तो वह फिल्म असफल है, बेकार है। वह मूढ़तापूर्ण होनी ही चाहिए वरना कैसे वह आकर्षित करेगी इतने मूढों को?
मैंने कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन यदि उन्होंने कुछ सुन लिया है अपने सपनों में, तो उन्होंने मुझे गलत समझा है। यदि वह असफल हुई है, तो यही परम सफलता है। उसमें जरूर कुछ न कुछ होगा जो साधारण मन के पार का होगा। यही है परम सफलता |
हिटलर सफल नहीं है; भीड़ ने पूजा उसको। भीड़ की पूजा बताती है कि उसका संबंध भीड़ के साथ था। वह एक साधारण मूढ व्यक्ति था। लाओत्सु है परम सफल कोई नहीं जाता उसके पास, किसी ने नहीं सुना उसके बारे में स्व खबर भी नहीं सुनी। उसके आने-जाने का भी किसी को पता नहीं चलता। वह था परम सफल, और वह जानता था यह बात । वह ताओ - तेह-किंग में कहता है : 'मैं महिमावान हूं क्योंकि बहुत थोड़े से लोग ही मुझे समझ सकते हैं। सारा संसार मुझे गलत समझता है; इसीलिए मैं महिमावान हूं।' बात जितनी गहरी और नाजुक होती है, उतनी ही वह कम समझी जाएगी; ज्यादा संभावना तो गलत समझे जाने की है।
मेरा एक बहुत ही अदभुत व्यक्ति से मिलना हुआ। वे संन्यासी थे जब मैं छोटा था तो वे मेरे गांव आया करते थे और हमारे घर पर ठहरा करते थे। एक बात के कारण ही मेरा उनसे लगाव हो गया था. जब भी उनके प्रवचन के दौरान लोग तालियां बजाते, तो वे मेरी तरफ देखते और कहते, 'रजनीश, कुछ न कुछ गलत कह दिया है, वरना लोग तालियां क्यों बजा रहे हैं? लोग केवल तभी ताली बजाते हैं जब कुछ गलत हो, क्योंकि वे गलत हैं।' जब कोई ताली नहीं बजाता और कोई नहीं समझता कि वे क्या कह रहे हैं, जब हर कोई ऐसे दिखाई पड़ता जैसे अपना समय नष्ट कर रहा हो, तो वे घर आते और कहते, 'रजनीश, मैंने जरूर कोई महत्वपूर्ण बात कही। देखा तुमने कोई कुछ नहीं समझा!'