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________________ कुछ और नहीं चाहिए - केवल सजगता चाहिए। समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात् । समाधि का पूर्ण आलोक फलित होता है- ईश्वर के प्रति समर्पण घटित होने पर। और जब तुमने स्वयं का अध्ययन कर लिया है, जब तुमने स्वयं को जान लिया है - तो समर्पण। तब समर्पण बहुत सहज हो जाता है तब वह कोई प्रयास नहीं रहता। अभी यदि तुम समर्पण करना चाहो, तो वह एक प्रयास होगा; और फिर भी वह समग्र नहीं होगा। यदि बिलकुल अभी तुम समर्पण करना चाहते हो, तो कैसे तुम समर्पण कर सकते हो जब भीतर घृणा मौजूद है? कैसे तुम समर्पण कर सकते हो जब भीतर ईर्ष्या मौजूद है? कैसे तुम समर्पण कर सकते हो जब भीतर हिंसा मौजूद है? नहीं, समर्पण केवल तभी संभव है, जब तुम पूरी तरह शुद्ध हो । कैसे तुम परमात्मा के सामने जा सकते हो और अपनी घृणा, हिंसा, ईर्ष्या वैमनस्य को उसके चरणों में अर्पित कर सकते हो? नहीं केवल जब तुम शुद्ध होते हो, एक शुद्धता का फूल- तब तुम प्रविष्ट होते हो मंदिर में और उसके चरणों में चढ़ा देते हो । तुम्हें समर्पण के योग्य होना होता है, क्योंकि समर्पण बहुत बड़ी बात है। उसके पार कुछ नहीं बचता है। तुम अपने संकल्प और प्रयास से समर्पण नहीं कर सकते, क्योंकि संकल्प और प्रयास का संबंध अहंकार से है। अहंकार समर्पण नहीं कर सकता है जब तुम स्वयं का अध्ययन करते हो, देखते हो स्वयं को तो अहंकार तिरोहित हो जाता है। तुम तो बचते हो, लेकिन कोई मैं नहीं बचता। तुम एक , विराट शून्य होते हो, जिसमें कहीं कोई मैं नहीं होता है। एक अनंत असीम अस्तित्व होता है, लेकिन कोई 'मैं' नहीं होता है। शुद्ध चेतना होती है, लेकिन अहंकार नहीं होता । तब समर्पण संभव है।' समाधि का पूर्ण आलोक फलित होता है - ईश्वर के प्रति समर्पण घटित होने पर । ' समाधि का पूर्ण आलोक फलित होता है तुम प्रकाश ही हो जाते हो हर चीज खो जाती है। तुम एक शुद्ध ऊर्जा होते हो; और प्रकाश शुद्धतम ऊर्जा है। अब वैज्ञानिक, भौतिक - शास्त्री, कहते हैं कि यदि कोई चीज प्रकाश की गति से चले, तो वह प्रकाश बन जाएगी। यदि ईंट को प्रकाश की गति से फेंका जाए, तो ईंट खो जाएगी। वह प्रकाश बन जाएगी। क्योंकि उस गति पर चीजें मिट जाती हैं, केवल ऊर्जा ही बचती है। अभी पता लगा है, इसी शताब्दी में पता लगा है कि इस बात की संभावना है कि सभी पदार्थ प्रकाश में, ऊर्जा में परिवर्तित हो सकते हैं। पदार्थ धीमी गति वाली ऊर्जा है; प्रकाश तीव्र गति वाली ऊर्जा है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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