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________________ होने लगता है। कोई कारण नहीं होता। तुम मालिश कर रहे हो व्यक्ति की और अचानक वह क्रोधित अनुभव करने लगता है। यदि तुम उसके मसूढे दबाओ, तो वह व्यक्ति फिर क्रोधित हो जाता है। वहां क्रोध इकट्ठा है। ये शरीर की अशुद्धियां हैं : उन्हें निर्मुक्त करना पड़ता है। यदि तुम उन्हें निर्मुक्त नहीं करते तो शरीर बोझिल रहेगा। योग के ऐसे आसन हैं जो शरीर में हर प्रकार के जहर को निर्मुक्त कर देते हैं। योग की क्रियाएं उन्हें निर्मुक्त कर देती हैं; और योगी के शरीर की एक अपनी ही संवेदनशीलता होती है। योग के आसन दूसरे व्यायाम से बिलकुल भिन्न हैं। वे तुम्हारे शरीर को शक्तिशाली नहीं बनाते; वे तुम्हारे शरीर को ज्यादा लोचपूर्ण, नमनीय बनाते हैं। और जब तुम्हारा शरीर ज्यादा लोचपूर्ण होता है, तो तुम एक अलग ही ढंग से शक्तिशाली होते हो. तुम ज्यादा युवा होते हो। वे तुम्हारे शरीर को ज्यादा तरल बनाते हैं, ज्यादा प्रवाहपूर्ण बनाते हैं। शरीर में कोई अवरोध नहीं रहता। संपूर्ण शरीर एक जैविक इकाई की भांति काम करता है। वह बाजार के शोर की भांति नहीं होता; वह आर्केस्ट्रा की भांति होता है। गहरी लयबद्धता होती है भीतर, कोई ग्रंथियां नहीं होती, तब शरीर शुद्ध होता है। योग के आसन अदभुत रूप से मदद दे सकते हैं। हर कोई अपने पेट में बहुत कुछ दबाए हुए है, क्योंकि केवल वही जगह है शरीर में जहां कि तुम बातों को दबा सकते हो। और तो कोई जगह नहीं है। यदि तुम किसी बात को दबाना चाहते हो तो उसे पेट में ही दबाना पड़ता है। यदि तुम रोना चाहते हो-तुम्हारी पत्नी मर गई है, कि तुम्हारी प्रेमिका मर गई है, कि तुम्हारा मित्र मर गया है लेकिन रोना अच्छा नहीं मालूम पड़ता। ऐसा लगता है जैसे कि तुम कमजोर प्राणी हो-एक स्त्री के लिए रो रहे हो। तो तुम उसे दबा लेते हो। लेकिन कहां ले जाओगे तुम उस रोने को? स्वभावत:, तुम्हें उसे पेट में दबाना पड़ता है। केवल वही जगह है शरीर में, एकमात्र खाली जगह, जहां तुम दबा सकते हो। यदि तुम पेट में दबा लेते हो.. और प्रत्येक व्यक्ति ने दबाई हैं बहुत तरह की भावनाएं-प्रेम की, कामवासना की, क्रोध की, उदासी की, रोने की, हंसने की भी। तुम हंस भी नहीं सकते खुल कर। वह असभ्यता मालूम पड़ती है, अभद्रता मालूम पड़ती है तो तुम सुसंस्कृत नहीं हो। तुमने हर चीज दबाई है। इसी दमन के कारण ही तुम गहरी श्वास नहीं ले सकते, तुम्हें उथली श्वास लेनी पड़ती है। क्योंकि यदि तुम गहरी श्वास लेते हो, तो दमन से हुए घाव फिर उभरेंगे। तुम भयभीत हो। हर कोई भयभीत है पेट में उतरने से। प्रत्येक बच्चा जब पैदा होता है, तो वह पेट से श्वास लेता है। देखना किसी सोए हए बच्चे को. पेट ऊपर-नीचे होता है-छाती से नहीं लेता वह श्वास। कोई बच्चा छाती से श्वास नहीं लेता है, बच्चे पेट से श्वास लेते हैं। वे अभी बिलकुल स्वाभाविक होते हैं, कोई चीज दबाई नहीं गई है। उनके पेट खाली होते हैं और उस खालीपन का एक सौंदर्य होता शरीर में।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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