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जरूरत है। तुम्हारा शरीर हलका होना चाहिए; और मांसाहारी का शरीर बहुत बोझिल होता है।
कभी ध्यान देना कि क्या होता है जब तुम मांस खाते हो : जब तुम किसी पशु को मारते हो तो क्या होता है उसे जब वह मरता है? निश्चित ही, कोई नहीं मरना चाहता। जीवन स्वयं को जारी रखना चाहता है, पशु स्वेच्छा से तो मर नहीं रहा है। अगर कोई तुम्हारी हत्या करे, तो तुम शाति से तो मर नहीं जाओगे। यदि एक सिंह छलांग लगा दे तुम पर और मार डाले तुमको, तो तुम्हारे मन पर क्या गुजरेगी? वैसी ही तकलीफ सिंह को होती है जब तुम सिंह को मारते हो। यंत्रणा, भय, मृत्यु, पीड़ा, चिंता, क्रोध, हिंसा, उदासी-ये सारी चीजें घटित होती हैं जानवर को। उसके सारे शरीर में हिंसा पीड़ा, यंत्रणा फैल जाती है। सारा शरीर विषाक्त तत्वों से, जहर से भर जाता है। शरीर की सारी ग्रंथियां जहर छोड़ देती हैं। क्योंकि जानवर बड़ी पीड़ा में मर रहा होता है। और फिर तुम खाते हो उस मांस को-उस मांस में वे सब जहर मौजूद हैं जो जानवर ने छोड़े हैं। सारी बात जहरीली है। फिर वे सारे जहर तुम्हारे शरीर में चले आते हैं।
और वह मांस जिसे तुम खा रहे हो, किसी जानवर के शरीर का मांस है। वहां उसका कोई सुनिश्चित उद्देश्य था। एक विशिष्ट ढंग की चेतना थी उस जानवर के शरीर में। तुम जानवर की चेतना की तुलना में ज्यादा ऊंचे तल पर हो, और जब तुम जानवर का मांस खाते हो तो तुम्हारा शरीर जानवर के निम्न तल पर आ जाता है। तब तुम्हारी चेतना और तुम्हारे शरीर के बीच एक दूरी पैदा हो जाती है, एक तनाव पैदा हो जाता है, एक बेचैनी होने लगती है।
तो तुम्हें वही चीजें खानी चाहिए जो स्वाभाविक हैं-तुम्हारे लिए स्वाभाविक हैं-फल, मेवा, सब्जियां, जितना हो सके खाओ ये सब। और मजे की बात यह है कि तम इन चीजों को अपनी जरूरत से ज्यादा नहीं खा सकते। जो कुछ भी स्वाभाविक होता है वह सदा तुम्हें तृप्ति देता है, क्योंकि वह तुम्हारे शरीर को पोषण देता है, तुम्हें सुखद अनुभूति देता है। तुम तृप्त अनुभव करते हो। यदि कोई बात अस्वाभाविक है तो वह तुम्हें कभी तृप्ति की अनुभूति नहीं देती। आइसक्रीम खाते चले जाओ : तुम कभी तप्त अनुभव नहीं करते। असल में जितना तुम खाते हो, उतना ही तम्हें लगता है कि और खाओ। वह भोज्य पदार्थ नहीं है। तुम्हारे मन को धोखा दिया जा रहा है। अब तुम शरीर की आवश्यकता के अनुसार नहीं खा रहे हो; तुम बस स्वाद के लिए खा रहे हो। जीभ निर्णायक हो गई है।
जीभ निर्णायक नहीं होनी चाहिए। वह पेट के बारे में कुछ भी नहीं जानती है। वह शरीर के बारे में कुछ भी नहीं जानती है। जीभ का केवल एक काम है : भोजन का स्वाद लेना। स्वभावत:, जीभ को सजग रहना होता है, केवल यह देखना होता है कि कौन सा भोजन शरीर के लिए ठीक है-मेरे शरीर के लिए और कौन सा भोजन मेरे शरीर के लिए ठीक नहीं है। वह दरवाजे पर बैठा चौकीदार है; वह मालिक नहीं है। और यदि दरवाजे पर बैठा चौकीदार मालिक बन जाए, तो हर चीज गड़बड़ा जाती है।