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________________ गुरु तो सदा ही अभिनय कर रहा होता है; गुरु एक कुशल अभिनेता होता है। वह जीवन को गंभीरता से नहीं लेता। वह जीवन को किसी चिंता, परेशानी की भांति नहीं लेता। जीवन एक खेल है। जब वह क्रोधित होता है, तो वह अभिनय कर रहा होता है; जब वह हंसता है, तो वह अभिनय कर रहा होता है। गुरु केवल अभिनय कर सकता है, क्योंकि वह कर्ता नहीं होता है जो कुछ भी वह करता है वह अभिनय ही है। और यदि तुम बहुत लगाव बना लेते हो अभिनय से तो तुम चूक जाओगे गुरु को। तो भूल जाना उसके क्रोध को और भूल जाना उसकी हंसी को, क्रोध के और हंसी के पीछे की घटना को देखना। और वहां तुम पाओगे उस वृद्ध व्यक्ति को जो न हंसता है, न क्रोधित होता है, न रोता है और न बोलता है वहा तुम उसे पाओगे परिपूर्ण मौन में वहा तुम पाओगे बुद्ध को एक गहन मौन - में, एक असीम शांति में विचार का हलका सा कंपन भी वहां नहीं होता। अन्यथा गुरु हमेशा अभिनय कर रहा होता है। - तो धोखे में मत पड़ जाना गुरु द्वारा ध्यान से देखते रहना मत सुनना उसके शब्दों को; वरना तुम उसे कभी नहीं देख पाओगे। उसके मौन को सुनना । दो शब्दों के बीच जो खाली जगह होती है, उसे सुनना दो पंक्तियों के बीच की खाली जगह में उसे पढ़ना जो वह कहता है, जो वह करता है, उस पर ज्यादा ध्यान मत देना; जो वह 'है' उस पर ध्यान देना। आज इतना ही। प्रवचन 55 शुद्धता, शून्यता और समर्पण योग - सूत्र: (समाधिपाद) कार्यन्द्रियसिद्धिपशुद्धिक्षयात्तपसः ।। 4311
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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