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________________ कैसी खुशी होती है, जब वह काबा जाता है। बड़ी अदभुत ऊर्जा उमड़ आती है। ऐसा नहीं है कि काबा कुछ करता है- नहीं, वह तो केवल एक मिथक है। लेकिन जब वह अता है उस पत्थर को, तो उसके पांव धरती पर नहीं पड़ते; वह एक दूसरे ही संसार में, काव्य के संसार में गति कर जाता है। जब वह परिक्रमा करता है काबा की, तो वह परमात्मा की परिक्रमा कर रहा होता है संसार भर के मुसलमान जब प्रार्थना करने बैठते हैं तो वे काबा की ओर मुंह करके बैठते हैं दिशाएं अलग होती है कोई इंगलैंड में प्रार्थना कर रहा है, लेकिन मुंह रखता है काबा की ओर कोई भारत में प्रार्थना कर रहा है, लेकिन मुंह रखता है काबा की ओर; कोई मिस्र में प्रार्थना कर रहा है, लेकिन मुंह रखता है काबा की ओर संसार भर में मुसलमान पांच बार नमाज पढ़ते हैं, सारे संसार में हर कहीं और वे मुंह रखते हैं काबा की तरफ-काबा संसार का केंद्र हो जाता है। एक प्रतीक है, एक सुंदर प्रतीक । उस क्षण में सारा संसार एक काव्य से आच्छादित हो जाता है। मनुष्य अस्तित्व को अर्थ देता है; यही है प्रतीक कथा का कुल अर्थ मनुष्य कहानियां गढ़ने वाला प्राणी है। फिर छोटी-छोटी कहानियां हैं-मोहल्ले-पड़ोस की, पड़ोसी की पत्नी की, और बड़ी कहानियां हैं - ब्रह्मांड की, परमात्मा की। लेकिन मनुष्य को बड़ा रस आता है कहानियों में। मुझे एक कहानी बहुत प्रीतिकर है; मैंने बहुत बार कही है। एक यहूदी कहानी है. बहुत वर्ष पहले, बहुत सदियों पहले एक नगर में एक रबाई रहता था। जब भी नगर में कोई मुसीबत आती, वह जंगल में जाता, कोई यज्ञ करता, प्रार्थना करता, अनुष्ठान करता; और परमात्मा से कहता, 'मुसीबत दूर करो हमें बचाओ' और नगर की सदा रक्षा हो जाती। फिर वह रबाई मरा; दूसरा आदमी रबाई बना। नगर पर मुसीबत आई; लोग घबडाए, इकट्ठे हुए। बाई गया जंगल में, लेकिन वह ठीक स्थान नहीं खोज पाया। उसे पता ही नहीं था। तो उसने परमात्मा से कहा, 'मुझे ठीक-ठीक स्थान पता नहीं है जहां वह बूढ़ा रबाई आपसे प्रार्थना किया करता था, लेकिन उससे लेना-देना भी क्या है आप तो वह स्थान जानते ही हैं, तो मैं यहीं बैठ कर प्रार्थना करूंगा।' नगर पर कभी कोई मुसीबत न आई। लोग प्रसन्न थे। फिर यह रबाई भी मरा तो दूसरा रबाई आया फिर नगर पर कोई मुसीबत आई, लोग इकट्ठे हुए। वह जंगल में गया, लेकिन उसने परमात्मा से कहा, 'मुझे ठीक-ठीक पता नहीं कि वह स्थान कहां है। अनुष्ठान, कर्म कांड वगैरह कुछ मैं जानता नहीं। मैं तो केवल प्रार्थना जानता हूं। तो कृपा करें, आप तो सब कुछ जानते हैं, शेष विस्तार की फिक्र न करें। मेरी प्रार्थना सुनें....।' और जो उसे कहा था उसने कहा संकट टल गया।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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