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पांचवां प्रश्न :
सुखद अनुभूति के लिए मनुष्य सदा गर्भ जैसी स्थिति की तलाश में रहता है। हम सब को आपके साथ बहुत अच्छा लगता है क्या हमें गर्भ मिल गया है?
निश्चित ही। गुरु और कुछ नहीं है सिवाय एक गर्भ के : उसके द्वारा तुम दोबारा जन्म लेते हो। तुम मरते हो उसमें; तुम मिटते हो उसके साथ; सदगुरु सूली भी है और पुनरुज्जीवन भी।
यही है जीसस की कहानी का अर्थ : तुम मरते हो उसमें, और तुम फिर जन्म लेते हो उससे। गुरु एक गर्भ है। एक गर्भ होता है-मां का गर्भ। दूसरा गर्भ होता है-गुरु का गर्भ। मां भेजती है तुम्हें इस संसार में; गुरु भेजता है तुम्हें इसके पार। सदगुरु भी मां है।
छठवां प्रश्न :
आप अपने साथ हमेशा एक नैपकिन क्यों लिए रहते हैं जब कि उसकी कोई भी जरूरत नहीं है?
यह प्रतीकात्मक है : कि मैं अपने नैपकिन की भांति ही अनुपयोगी हूं। मैं उपयोगिता में विश्वास
नहीं करता हूं। उपयोगिता संसार की चीज है, बाजार की चीज है। मैं विश्वास करता हूं गैर-उपयोगी चीजों में. जैसे कि फूल। एक फूल की क्या उपयोगिता है? क्या लाभ है? वह बिलकुल अनुपयोगी है, और इसीलिए सुंदर है, अदभुत सुंदर है।
मेरे देखे, जीवन प्रयोजनहीन है। उसका कोई प्रयोजन नहीं है। यदि कोई उद्देश्य होता, प्रयोजन होता, तो जीवन इतना सुंदर नहीं हो सकता था। प्रयोजन सदा असुंदरता निर्मित कर देता है। प्रयोजन तुम्हें उपयोगी वस्तुएं देता है-आनंद नहीं। प्रयोजन तुम्हें फैक्टरियां देता है-मदिर नहीं। जीवन कोई फैक्टरी नहीं है, वह मंदिर है। मंदिर का क्या उपयोग है?
पूरब में प्रत्येक गांव में एक मंदिर होता है; कम से कम एक तो होता ही है। ज्यादा हों, तो अच्छा है; वरना एक मंदिर तो होता ही है। बहत गरीब गांव में भी एक मंदिर जरूर होता है। जब पश्चिमी लोग